प्राण सुदर्शन-गुरु जी! आज पड़ोस में एक आदमी के मरने से लोगों ने कहा-इसके प्राण निकल गये। सो प्राण क्या है? अध्यापक-हाँ सुनो! जिसके सद्भाव से जीव में जीवितपने का और वियोग होने पर मरणपने का व्यवहार है, उनको प्राण कहते हैं। प्राण के दस भेद हैं-स्पर्शन आदि पाँच इन्द्रियाँ, मनोबल, वचनबल, कायबल, (ये तीन…
षट्पाहुड की पद्यानुवादयुक्त अप्रकाशित पाण्डुलिपि महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ अष्टापाहुड की प्राचीन पाण्डुलिपियों की प्राप्ति हेतु हमने राजस्थान, दिल्ली, गुजरात, उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश आदि प्रान्तों की शोध यात्राएँ करके पचासों शास्त्र भण्डारों का सर्वेक्षण किया। इसमें हमें पर्याप्त सफलता मिली। किन्तु सीमित अवधि एवं धन में सभी स्थानों का स्वयं जाकर सर्वेक्षण करना सम्भव नहीं होने…
जैन धर्म की समाजवादी अर्थव्यवस्था जैन दर्शन निवृत्ति प्रधान है। यद्यपि जैनधर्म का अपरिग्रह का आदर्श सिद्धान्त धन के महत्त्व का विरोधी है। धन—संग्रह मुक्ति में बाधक है। धन के व्यवहार से मोक्ष नहीं मिल सकता है। इसमें आत्यन्तिक सुख नहीं। पुनरपि तीर्थंकरों के जन्म पर उनकी माता द्वारा देखे गये सोलह स्वपनों में एक…
आत्मानुशासन दिगम्बर जैन समाज में प्रचलित आत्मानुशासन नामक महान ग्रंथ आचार्य श्री गुणभद्र स्वामी की अनुपम कृति है। यह ग्रंथ अपने नाम को सार्थक करता हुआ आत्मा पर अनुशासन करने की विद्या सिखाता है। व्यवहारिक जीवन में हम देखते हैं कि जो छात्र/छात्रा, पुत्र-पुत्री आदि अनुशासन में रहकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं, वे अपने…
श्रावक के १२ व्रत पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत ये बारह व्रत कहलाते हैं। पाँच अणुव्रत का लक्षण बताया जा चुका है। अब यहाँ गुणव्रत और शिक्षाव्रतो को बतलाते हैं। गुणव्रत जो अणुव्रतों को बढ़ाते हैं अथवा उसमें दृढ़ता या मजबूती लाने वाले होते हैं उन्हें गुणव्रत कहते हैं। उनके तीन भेद हैं-दिग्व्रत,…
चतुर्णिकाय देव त्रिशला-माताजी! आज शास्त्र में पढ़ा है कि चतुर्निकाय के देव भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं, वे कौन हैं और कहाँ रहते हैं? आर्यिका-पुण्यरूप देवगति नामकर्म के उदय से जो देवपर्याय को प्राप्त करते हैं उन्हें देव कहते हैं। इनके चार भेद हैं-भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। पहली रत्नप्रभा पृथ्वी के तीन…
तीर्थंकर जन्मभूमि विकास की आवश्यकता संसार समुद्र से संसारी प्राणियों को पार करने वाले पवित्र स्थल तीर्थ कहे जाते हैं। वे तीर्थ दो प्रकार के होते हैं-द्रव्य तीर्थ और भावतीर्थ। रत्नत्रयस्वरूप भाव-परिणाम भावतीर्थ तथा महापुरुषों की चरणरज से पावन भूमियाँ द्रव्यतीर्थ हैं। उनमें २४ तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञानकल्याणक स्थल तीर्थक्षेत्र, मोक्षकल्याणक स्थल सिद्धक्षेत्र…