उपादान कारण!
उपादान कारण Material cause, Affluent cause . जो पदार्थ स्वयं कार्य रूप परिणमन करे जैसे घट की उत्पत्ति में मिट्टी।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
उपादान कारण Material cause, Affluent cause . जो पदार्थ स्वयं कार्य रूप परिणमन करे जैसे घट की उत्पत्ति में मिट्टी।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
उपादान Motive, Cause of existence of material . अन्तरंग कारण जो द्रव्य तीनों कालों में अपने रूप से और अपूर्वरूप से वर्त रहा है वह उपादान कारण है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निश्यय – Nishchaya. Absolute conception or belief, determination. परमार्थ की विशेष रूप से तथा संशयादीसे रहित अवधारणा निश्चय कहलाती है, दृढ़ विश्वास, असंदिग्ध अवधारणा “
द्रव्यतीर्थ Place of pilgrimages. तीर्थंकरों की कल्याणक भूमियाँ, सिद्धक्षेत्र, अतिशयक्षेत्र आदि जिनकी वंदना – अर्चना संसार से तिरने में सहायक होती है। जैसे- अयोध्या, सम्मेदशिखर, कुण्डलपुर आदि।[[श्रेणी: शब्दकोष ]] तीर्थंकरों के पंच कल्याणकों से एवं महापुरुषों के तप- त्याग से पवित्र स्थलों को द्रव्यतीर्थ कहते हैं ।इस द्रव्यतीर्थ को जैन शास्त्रों में तीन भागों में…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लोभ (कषाय ) – Lobha (Kashaaya) Passion for prosperity (greed). चौथी कषाय ;इसमें धन सम्पति पाने की तीव्र लालसा या वृद्धि –इच्छा बनी रहती है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निर्वैर – Nirvaira. Peaceable, enmitiless feelings. सम्पूर्ण प्राणियों से मैत्रीभाव होना अर्थात्किसी से वैर न होना”
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकृति संक्रमण – Prakrti Samkramana. Transition of karmic species. कर्म की १० अवस्थाओं में एक अवस्था; बंधरूप प्रक्रति का अन्यरूप परिणमन होना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निर्विचिकित्सा – Nirvichikitsaa. To have reverential belief with free from any disgust on viewing excreta of saints. घृणा नहीं करना, सम्यग्दर्शन के 8 अंगों में तीसरा अंग; रत्नत्रयसे पवित्र साधुओं के मलिन शरीर, मलमूत्रादी से घृणा न करते हुए वस्तुस्वरूप का विचार करना ” परोपकार के निमित भी इस गुण का पालन करना चाहिए…