तर्ज-दीदी तेरा…………………… प्रश्न ४ – चैतन्यमय जीव आत्मा के कितने, भेदों का वर्णन बताता जिनागम ? उनकी क्या पहचान बाहर से होती, अन्तर में उनके क्या कहता है आगम ? सम्यग्दृष्टी है कौन माना, मैं तो चाहूँ सबके ज्ञान को बढ़ाना।।४।।…
छठवीं ढाल (हरिगीता छंद) अहिंसा, सत्य, अचौर्य तथा ब्रह्मचर्य महाव्रतों का लक्षण षट्काय जीव न हननतैं, सब विधि दरब-हिंसा टरी। रागादि भाव निवारतैं, हिंसा न भावित अवतरी।। जिनके न लेश मृषा न जल, मृण हू बिना दीयौ गहैं। अठदशसहस विधि शील धर, चिद्ब्रह्म में नित रमि रहैं।।१।। अर्थ – छहकाय के जीवों का घात…
दूसरी ढाल (पद्धड़ी छन्द) संसार परिभ्रमण के कारण ऐसे मिथ्यादृग-ज्ञान-चरण, वश भ्रमत भरत दुख जन्म-मरण। तातैं इनको तजिये सुजान, सुन तिन संक्षेप कहूँ बखान।।१।। अर्थ – यह जीव मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र के आधीन होकर चारों गतियों में भ्रमण करता है और जन्म-मरण के दु:खों को सहता है इसलिए भलीभांति समझकर उनको त्यागिए। उन तीनों…