पंचमेरु स्तुति
पंचमेरु स्तुति दोहा परमानंद जिनेन्द्र की, शाश्वत मूर्ति अनूप।परम सुखालय जिनभवन, नमूँ नमूँ चिद्रूप।।१।। चौबोल छंद (मेरी भावना की चाल) मेरु सुदर्शन विजय अचल, मंदर विद्युन्माली जग में।पूज्य पवित्र परमसुखदाता, अनुपम सुरपर्वत सच में।। अहो अचेतन होकर भी ये, चेतन को सुख देते हैं।दर्शन पूजन वंदन करते, भव भव दु:ख हर लेते हैं।।२।। अनादि अनिधन...