श्री मुनिसुव्रत-जिनस्तोत्र
श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनस्तोत्र (सप्तविभक्ति समन्वित) स्वगुणरुचिरै: रत्नै:, रत्नाकरो व्रतशीलभृत्। समरसभरै: नीरै:, पूर्ण: महानिधिमान् पुमान्।। त्रिभुवनगुरुर्विष्णु-र्ब्रह्मा शिवो जिनपुंगव:। विगलितमहामोहोऽदोषो जिनो मुनिसुव्रत:।।१।। कुसुमितलता वेल्लिता छंद-(१८ अक्षरी) कर्तुस्तीर्थस्य, प्रणतदिविज: ते सुमित्र: पितासौ। धन्या सोमा सा, त्रिभुवनगुरोर्जन्मदात्री प्रसिद्धा।। गर्भे संयातो, द्वितयदिवसे, श्रावणे कृष्णपक्षे। जातो वैशाखे, विगलिततमा: कृष्णपक्षे दशम्यां।।२।। सिंहविक्रीडित छन्द:-(१८ अक्षरी) व्रतगुणनिधिभृत् स वैशाखकृष्णे दशम्यां मुनि:। सकलविमलबोधभास्वान् नवम्यां च...