पंचकल्याणक वंदना
पंचकल्याणक वंदना सोरठा जय जय श्री जिनराज, पृथ्वी तल पर आवते। बरसें रत्न अपार, सुरपति मिल उत्सव करें।।१।। शंभु छंद प्रभु तुम जब गर्भ बसे आके, उसके छह महिने पहले ही। सौधर्म इंद्र की आज्ञा से, बहुरतनवृष्टि धनपति ने की।। मरकतमणि इंद्र नीलमणि औ, वरपद्मरागमणियाँ सोहें। माता के आँगन में बरसे, मोटी धारा जनमन मोहें।।२।।...