जैनधर्म और वर्ण व्यवस्था
[[श्रेणी:जैन जातियां]] ”जैनधर्म और वर्ण व्यवस्था” स्वर्गस्थ-आर्यिका श्री विजयमती माताजी स्याद्वादो वर्तते यस्मिन्, पक्षपातो न विद्यते। नास्ति परिपीडनं यस्मिन्, जैनधर्मो स उच्यते।। ‘जिसमें वस्तुतत्व-प्रतिपादन का माध्यम स्याद्वाद हो, प्रत्येक वस्तु में रहने वाले अनन्त धर्मों का निरूपण रूप से किया गया हो, परपीड़ा का जिसमें लवलेश भी नहीं रहे, वही जैनधर्म है।’ इस कथन से…