सत्त्व प्रकरण प्रकृतियों के सत्त्व का नियम तित्थाहारा जुगवं सव्वं तित्थं ण मिच्छगादितिए। तस्सत्तकम्मियाण तग्गुणठाणं ण संभवदि।।११०।। तीर्थाहारा युगपत् सर्वं तीर्थं न मिथ्यकादित्रये। तत्सत्वकर्मकाणां तद्गुणस्थानं न संभवति।।११०।। अर्थ—मिथ्यादृष्टि, सासादन, मिश्र इन तीनों गुणस्थानों में से क्रम से पहले में तीर्थंकर और आहारकद्वय एक काल में नहीं होते तथा दूसरे में सब (तीनों) हा किसी काल…
जीवन दान (१) पूजन की सामग्री हाथ में लिये हुए बहुत से सेठ लोग आगे बढ़ते चले जा रहे हैं और बहुत से भक्त वापस आ रहे हैं। यह देखकर मृगसेन धींवर भी उधर ही बढ़ा, आगे देखता है एक महामुनिराज मध्य में विराजमान हैं। भक्त लोग उनकी भक्ति में तत्पर हैं। मध्य-मध्य में समय…
तमिलनाडू में आर्यिकाओं का स्थान सिम्हाचंद शास्त्री, मद्रास भारत धर्म प्रधान देश है। संस्कृति और कला का उन्नायक स्थान है। साहित्य और इतिहास का खान है। साहित्य समाज का दर्पण है। इतिहास समाज का जीवन है। प्राचीनता साहित्य का देन है। जैन साहित्य जैनधर्म की प्राचीनता का द्योतक है। इस तथ्य का प्रामाणिक आधार विविध…
एक अनमोल घरेलू औषधि है हल्दी हल्दी मसाला ही नहीं, बल्कि एक प्रभावी घरेलू औषधि भी है, जिसका प्रयोग पुराने जमाने से ही किया जाता रहा है। सर्दी, खांसी, दर्द, चोट-मोच सहित कई ऐसे रोग-विकार हैं, जिनमें हल्दी के प्रयोग से आशातीत लाभ मिलता है। हल्दी एक बहुत ही कारगर प्रभाव वाली घरेलू औषधि…
हरिषेण चक्रवर्ती ने अगणित जिनमंदिर बनवाये अथासावन्यदापृच्छत् सुमालिनमुदद्भुतः। उच्चैर्गगनमारूढो विनयानतविग्रहः।।२७२।। सरसीरहितेऽमुष्मिन् पूज्यपर्वतमूद्र्धनि। वनानि पश्य पद्मानां जातान्येतन्महाद्भुतम्।।२७३।। …
अनेकान्त पत्रिका के लेख जैनाचार्यों द्वारा प्रतिपादित अहिंसा एवं विश्वशान्ति १. अहिंसा की पृष्ठभूमि— अहिंसा मनुष्य की पहली पहचान है। मनुष्य की मौलिकता और स्वभाव का जीवन सूत्र है—अहिंसा। हिंसा—मनुष्य की निर्मिति है। जितनी कम हिंसा हो, उतना ही जीवन श्रेष्ठतर होगा। Less Killing is better living मनुष्य जो चाहे हो सकता है, हिंसक भी…
आर्यिकाओं की आचार पद्धति चर्तुिवध संघ में आर्यिकाओं का स्थान मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका रूप चर्तुिवध संघ में ‘आर्यिका’ का दूसरा स्थान है। श्वेताम्बर जैन परंपरा के प्राचीन आगमों में भी यद्यपि इन्हें अज्जा, आर्या, आर्यिका कहा है, किन्तु इस परंपरा में प्राय: इन्हें ‘साध्वी’ शब्द का ज्यादा प्रयोग हुआ है। प्रथम तीर्थंकर भगवान्…
जिनेन्द्र का लघुनन्दन-श्रावक ‘श्रावक’ शब्द सामान्य ‘गृहस्थ’ शब्द से ऊँचा, अर्थ—गम्भीर और भावपूर्ण है। श्रावक शब्द का अर्थ शिष्य या सुनने वाला भी है। जैन और बौद्ध परंपरा के अनुसार‘श्रावक’ वह है जो सद्धर्म पर श्रद्धा रखता है, गृहस्थोचित व्रत या दायित्वों का निष्ठापूर्वक पालन करता है, पाप—क्रियाओं से दूर रहता है और अपनी सीमा…