श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पटनागंज, रहली —ब्र. कु. प्रीति जैन (संघस्थ) मध्यप्रदेश के सागर जिलान्तर्गत रहली तहसील मुख्यालय में लगभग १२०० वर्ष प्राचीन श्री दिगम्बर जैन अतिशयकारी तीर्थक्षेत्र पटनागंज जी विशाल क्षेत्र स्थित है। स्वर्णभद्र नदी के सुरम्य तट पर एक ही परकोटे में अतिप्राचीन और अतिशयकारी ३० गगनचुंबी जिनालयों की लम्बी शृँखला है।…
श्री पूज्य १०८ आचार्यश्री वीरसागर जी महाराज का परिचय जीवन चरित्र रचयिता—संहितासूरि प्रतिष्ठाचार्य ब्र. श्री सूरजमल जैन दोहा वर्धमान जिनराज अरु गुरु गौतम शिर नाय। द्वादशांग वाणी नमों मन वच काय लगाय।। मूल संघ में श्रेष्ठ श्री कुन्दकुन्द भगवान्। परम्परा उनकी भये शान्ति सिन्धु गुणखान। दीक्षा धर इस काल में मुनि का धर्म…
चन्द्रगुप्त मौर्य व उनकी कृति सुदर्शन झील सुदर्शन झील पश्चिम भारत के सौराष्ट्र देश के गिरिनगर स्थित गिरनार पर्वत की प्रान्तीय नदियों पर बांध बांधकर चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा बनवाई गई थी। इस झील के सन्दर्भ में समय-समय पर अनेक विद्वानों ने लिखा है किन्तु कहीं पर भी पूर्ण जानकारी न मिलने से इस झील का…
सत्य अहिंसा के अवतार कुण्डलपुर के राजकुमार संसार को सत्य—अहिंसा रूप शाश्वत मूल्यों का उत्कृष्ट पथ प्रदर्शित करने वाले इस युग के तीर्थंकर भगवन्तों की परम्परा में अंतिम एवं २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने २६०१ वर्ष पूर्व बिहार प्रान्त की कुण्डलपुर नगरी (नालन्दा) में महाराजा सिद्धार्थ एवं महारानी त्रिशला के आंगन में चैत्र शुक्ला…
”विपुलाचल पर्वत पर प्रथम दिव्यध्वनि खिरी” भगवान महावीर का समवसरण बन गया था किन्तु भगवान की दिव्यध्वनि नहीं खिरी थी। जब प्रभु का श्रीविहार होता था तब समवसरण विघटित हो जाता था एवं प्रभु का श्रीविहार आकाश में अधर होता था। देवगण भगवान के श्रीचरण कमलों के नीचे-नीचे स्वर्णमयी सुगंधित दिव्य कमलों की रचना करते…
द्वादशकल्प व्रत(मुष्टि तंदुल व्रत) जैन परम्परा में तपश्चरण को कर्म-निर्जरा में प्रमुख कारण माना है, यही कारण है कि जैनसाधु एवं श्रावक विविध प्रकार के व्रतों का समय-समय पर अनुष्ठान करते हुए देखे जाते हैं। इन्हीं व्रतों में से महान फलदायी व्रत है-द्वादशकल्प व्रत अथवा मुष्टि तंदुल व्रत। इस व्रत को गृहस्थ श्रावक-श्राविकाएं ही करते…
कमलों में जिनमंदिर मंगलाचरण -गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी श्र्यादिदेवीकमलेषु, परिवारकंजेष्वपि। जिनालया जिनार्चाश्च, तांस्ता: स्वात्मश्रियै नुम:।।१।। श्री आदि-ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी इनके कमलों में तथा इनके परिवार कमलों में भी जिनमंदिर हैं और जिनप्रतिमाएँ हैं। उन सभी जिनमंदिर व जिनप्रतिमाओं को हम अपनी आत्मा की श्री-लक्ष्मी-गुणसंपत्ति को प्राप्त करने के लिए नमस्कार करते हैं।।१।।…