जैनधर्म के नवम तीर्थंकर श्री पुष्पदन्त भगवान डा. सुरेन्द्रकुमार जैन ‘भारती’ जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र की काकन्दी नगरी में इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगोत्री सुग्रीव नाम का क्षत्रिय राजा राज्य करता था। सुन्दर कान्ति को धारण करने वाली जयरामा उसकी पटरानी थी। उस रानी ने देवों के द्वारा अतिशय श्रेष्ठ रत्नवृष्टि आदि सम्मान को पाकर फाल्गुन कृष्ण नवमी…
जयकुमार-सुलोचना (स्वयंवर प्रथा का प्रारम्भ जिनसे हुआ)(सर्वप्रथम सामूहिक प्रार्थना का एक दृश्य दिखावें। सम्भव हो तो हस्तिनापुर के इतिहास से सम्बन्धित भजन लेवें।) पहला दृश्य कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर में भगवान ऋषभदेव के द्वारा राजाधिराज पद पर स्थापित राजा सोमप्रभ राज्य करते थे। उनकी लक्ष्मीमती नामक रानी से १५ पुत्र उत्पन्न हुये जिसमें प्रथम…
देवगढ़ के मूर्तिशिल्प में जिनेतर जैन देवकुल का विकास आठवीं से बारहवीं शती के मध्य उत्तर भारत के राजनीतिक मंच पर विभिन्न राजवंशों का उदय हुआ, जिनके सीमित राज्यों में विभिन्न आर्थिक, धार्मिक संदर्भों में जैन धर्म, कला—स्थापत्य एवं मूर्तियों के विकास की क्षेत्रीय धारायें उद्भूत एवं विकसित हुईं। इनसे कला केन्द्रों का मानचित्र पर्याप्त…
मन्त्र विद्या एक विश्लेषण भारतवर्ष अनादिकाल से ज्ञान— विज्ञान की गवेषणा, अनुशीलन एवं अनुसन्धान की भूमि रहा है। विद्याओं की विभिन्न शाखाओं में भारतीय मनीषियों ऋषियों एवं अघ्येताओं ने जो कुछ किया, नि:सन्देह वह यहां की विचार—विमर्श एवं चिन्तन प्रधान मनोवृत्ति का द्योतक है। दर्शन, व्याकरण, साहित्य, न्याय, गणित ज्योतिष आदि सभी विद्याओं में भारतीयों…
सज्जाति -गणिनी आर्यिका ज्ञानमती सज्जाति: सद्गृहस्थत्वं, पारिव्राज्यं सुरेन्द्रता । साम्राज्यं परमार्हन्त्यं, निर्वाणं चेति सप्तधा ।। सज्जाति, सद्गृहस्थ श्रावक के व्रत, पारिव्राज्य मुनियों के व्रत सुरेन्द्रपद, साम्राज्य चक्रवर्ती पद , अरहन्तपद , निर्वाणपद । ये सात परम स्थान कहलाते हैं । सम्यग्दृष्टि जीव क्रम-क्रम से इन परम स्थानों को प्राप्त कर लेता है । इन्हें…
समयसार-अमृतकलश पद्यावली आचार्य श्री कुन्दकुन्ददेव ने समयसार नामक महानग्रंथ की रचना करके बहुत बड़ा उपकार किया है। इस ग्रंथ के बारे में कहा जाता है कि- तरणकला जाने बिना, ज्यों नहिं नैया पार। समयसार जाने बिना, त्यों नहिं हो भव पार।। यह समयसार जीवन की अमूल्य निधिस्वरूप है। पूज्य आर्यिका श्री अभयमती माताजी ने इस…
श्री अणिन्दा पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र —प्रभुलाल मानावत (सचिव), उदयपुर श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र अणिन्दा पार्श्वनाथ जी राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है। अणिन्दा ग्राम के तहसील वल्लभनगर में स्थित यह क्षेत्र जंगल के मध्य तालाब के किनारे पर स्थित है। रेलवे स्टेशन उदयपुर से यह ४० कि.मी. एवं उदयापोल बस स्टैण्ड,…
बुन्देलखण्ड का पुरावैभव प्रतिष्ठाचार्य पं. विमलकुमार जैन सोनरया’ बुन्देलखण्ड अपने सांस्कृतिक गौरव के लिए सदैव कीर्तिमान रहा है। बुन्देलखण्ड शिल्प, कला, संस्कृति, शिक्षा साहस शौर्य एवं अध्यात्म का धनी, प्राकृतिक सौन्दर्यता और खनिज पदार्थों का केन्द्र रहा है। यहाँ के जन्मास में सदैव सदाचरण की गंगा प्रवाहित होती रहती है। कला और संस्कृति के अद्वितीय…
नैऋत्य दिशा का द्वार-बर्बादी का लक्षण भारतीय वास्तुशास्त्र में नैऋत्य दिशा (साउथ-वेस्ट) का द्वार अत्यंत हानिकारक माना गया है। घर-दुकान, फैक्ट्री, अस्पताल या फार्म-हाउस कुछ भी हो, नैऋत्य दिशा वाले भवन में बड़ी से बड़ी दुर्घटनाएं होती देखी गई हैं। वास्तु विज्ञान के पन्द्रह साल के अनुभव में मैंने इस द्वार वाले भवन में अनर्थ…