भगवान पुष्पदंतनाथ जन्मभूमि काकन्दी जैनधर्म के ९वें तीर्थंकर भगवान पुष्पदंतनाथ के गर्भ-जन्म-तप एवं केवलज्ञान, इन चार कल्याणकों से पवित्र भूमि कावंâदी तीर्थ है । वर्तमान में यह तीर्थ गोरखपुर (उ.प्र.) के निकट देवरिया जिले में स्थित है, जिसे खुखुन्दू के नाम से भी जाना जाता है । पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की पावन प्रेरणा…
इन्हें भी आजमाइए ब्रेड़ या सब्जी के बहुत बारीक टुकड़े काटने के लिये चाकू का प्रयोग करने से पहले कुनकुने गरम पानी में थोड़ी देर उसे डुबोये रखना चाहिये। स्वेटर बुनने वाली सलाई की घुण्डी (निचला हिस्सा) यदि टूट जाये, तो उस पर रबड़ बैंड की सहायता से रबड़ का एक छोटा सा टुकड़ा फंसा…
आपकी हथेली का मणिबंध बता देता है आप भाग्यशाली हैं या नहीं हाथों की रेखाओं और बनावट से भविष्य जानने की विद्या को हस्तरेखा ज्योतिष कहते हैं। हस्तरेखा विद्या का इतिहास काफी प्राचीन है और आज भी यह ज्योतिष के सबसे प्रामाणिक विद्याओं में से एक है। हथेली की रेखाओं और बनावट का गहनता…
कागदीपुरा (नालछा) में ही पंडित आशाधरजी द्वारा निर्मित विद्यापी सारांश २३ अक्टूबर २००३ को नालछा के समीप कागदीपुरा से भगवान नेमिनाथ की १३ वीं शती की एक पद् —मासन सांगोंपांग प्रतिमा प्राप्त हुई। इस प्रतिमा की प्राप्ति स्थल के ऐतिहासिक सन्दर्भों एवं पुरातात्विक अवशेषों का विश्लेषण प्रस्तुत आलेख में किया गया है। नाालछा धार…
पं. जुगलकिशोर मुख्तार जीवन परिचय जन्म २० दिसम्बर १८७७ स्वर्गवास २२ दिसम्बर १९६२ प्राच्य विद्या महार्णव पं. जुगलकिशोर मुख्तार ‘युगवीर’ भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के गम्भीर अध्येता और मौलिक चिन्तक थे आपका अधिकांश समय जैन साहित्य, कला एवं पुरातत्व के अध्ययन, अनुसंधान में ही व्यतीत हुआ। आपने महानगरी दरियागंज, दिल्ली में वीर सेवा मंदिर की…
अत्तिमब्बे डॉ. हंपा नागराजय्य कर्नाटक के इतिहास में दसवीं शताब्दी, सुवर्णयुग कहलाती है। राजकीय, साहित्य, संस्कृति, कला, धर्म इस प्रकार अनेक क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण घटनाएं इसी समय में घटी हैं। गंग, राष्ट्रकूट, पश्चिम चालुक्यों के दो चक्रवर्ती इसी शताब्दी में विराजमान थे। इम्मड़ि बूतुग, मारसिंह, चावुंडराय ने गंगवंश को प्रज्वलित किया। मुम्मड़ि कृष्ण ने…
संज्ञी मार्गणासार जीव दो प्रकार के होते हैं—संज्ञी और असंज्ञी। संज्ञी—नोइन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम या उससे उत्पन्न ज्ञान को संज्ञा कहते हैं। वह जिसके हो वह संज्ञी कहलाता है अर्थात् मन सहित जीव संज्ञी हैंं। ये शिक्षा, उपदेश, संकेत ग्रहण कर सकते हैं। असंज्ञी—मन रहित जीव असंज्ञी कहलाते हैं। ये शिक्षा, उपदेश आदि नहीं समझ…
अक्षय निधि व्रत अक्षयनिधिनियमस्तु श्रावणशुक्ला दशमी भाद्रपदशुक्ला तत्कृष्णा चेति दशमीत्रयं पञ्चवर्षे यावत् व्रतं कार्यम्; दशमीहानौ तु नवम्यां वृद्धौ तु यस्मिन् दिने पूर्णा दशमी तस्मिन्नेव दिने व्रतं कार्यम्; वृद्धिगततिथौ सोदयप्रमाणेऽपि व्रतं न कार्यम्। अर्थ- अक्षय निधि व्रत श्रावण शुक्ला दशमी, भाद्रपद कृष्णा दशमी, भाद्रपद शुक्ला दशमी, इस प्रकार तीन दशमियों को किया जाता है। यह व्रत…