विधान – श्री ऋषभदेव विधान (वृहद्) श्री ऋषभदेव विधान (लघु) पढ़ें श्री ऋषभदेव विधान पढ़ें व्रत- श्री ऋषभदेव व्रत पढ़ें भजन – भगवान ऋषभदेव से सम्बन्धित भजन चालीसा – भगवान ऋषभदेव चालीसा ऋषभदेव चालीसा भगवान ऋषभदेव दीक्षा ,केवलज्ञान भूमि प्रयाग तीर्थक्षेत्र चालीसा भगवान ऋषभदेव निर्वाणभूमि कैलाशगिरी सिद्धक्षेत्र चालीसा वंदना – भगवान ऋषभदेव वन्दना श्री ऋषभदेव…
मांसाहार से छुटकारा कैसे पाएं ? पुस्तकों में वर्णित शाकाहार व मांसाहार के गुण दोषों को समझने व मांसाहार से होने वाले रोगों व हानियों को जानने के बाद जो भाई बहिन मांसाहार को त्याग कर शाकाहारी बनना चाहते हैं, किंतु सामाजिक व पारिवारिक परिस्थितियों के कारण अथवा स्वाद के वश इसको त्यागने में संकोच…
एक बकरे की आत्म-कथा अन्य सभी जीवों की भांति अनेकों योनियों में भ्रमण करने के बाद जब मैं बकरी माँ के गर्भ में आया और पांच महिने गर्भ की त्रास सहने के बाद जब मेरा जन्म हुआ तो एक बार मुझे यह दुनिया बहुत सुन्दर व प्यारी लगी । मनुष्य व उसके छोटे-छोटे बच्चे सब…
चरण – स्पर्श का मनोविज्ञान मस्तिष्क ही नहीं , जीवन का हर अंग मूल्यवान है ! सिर से लेकर पैर तक कोई भी अंग ऐसा नहीं है जिसे हम निरथर्क या निमुल साबित कर सके ! आँख, कान, नाक,गला, हाथ, छाती, पेट जंघा सभी मूल्यवान है ! हर व्यक्ति शरीर में इतनी संपदाओं को संजोये…
आकर्षण का नियम आकर्षण का नियम एक ऐसा तरीका है जिसे अपनाकर आप अपनी जिंदगी को सकारात्मक मोड़ दे सकते है | आप जिससे डरते हैं और आप जो नहीं चाहते, अगर आप उस पर ध्यान लगाने की बजाय इस बात पर ध्यान लगाएं कि आप क्या चाहते हैं तो आपकी पूरी जिंदगी बदल सकती…
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) ‘‘परिणतनयस्यांगी—भावाद्विविक्त—विकल्पितं। भवतु भवतस्त्रातृ त्रेधा जिनेन्द्र—वचोऽमृतम्।।२।।’’ अमृतर्विषणी टीका— अर्थ— द्रव्र्यािथक नय को गौणकर पर्यार्यािथक नय की प्रधानता लेकर अङ्ग, पूर्व आदिरूप से रचा गया अथवा पूर्वापर दोष रहित रचा गया ऐसा उत्पाद—व्यय—ध्रौव्यरूप से अथवा अङ्ग—पूर्व, और अङ्ग—बाह्यरूप से तीन प्रकार का जिनेन्द्र का वचनरूप अमृत संसार से रक्षा करे।।२।।…
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) श्री गौतमस्वामी नवदेवों के अन्तर्गत धर्म की वंदना करते हैं— ‘‘क्षान्त्यार्जवादिगुणगणसुसाधनं सकललोकहितहेतुम्। शुभधामनि धातारं, वन्दे धर्मं जिनेंद्रोक्तम्।।६।।’’ अमृतर्विषणी टीका— अर्थ— जो क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि गुणों के समूह का साधन है, संपूर्ण लोक के हित का का हेतु है और शुभ—मोक्षस्थान में पहुँचाने वाला है ऐसे जिनेंद्रदेव द्वारा…