मेरी माँ!
मेरी माँ मेरी माँ की सिर्फ एक ही आँख थी और इसीलिए मैं उनसे बेहद नफ़रत करता था ! वो फुटपाथ पर एक छोटी सी दुकान चलाती थी ! उनके साथ होने पर मुझे शर्मिंदगी महसूस होती थी ! एक बार वो मेरे स्कूल आई और मैं फिर से बहुत शर्मिंदा हुआ ! वो मेरे…
मेरी माँ मेरी माँ की सिर्फ एक ही आँख थी और इसीलिए मैं उनसे बेहद नफ़रत करता था ! वो फुटपाथ पर एक छोटी सी दुकान चलाती थी ! उनके साथ होने पर मुझे शर्मिंदगी महसूस होती थी ! एक बार वो मेरे स्कूल आई और मैं फिर से बहुत शर्मिंदा हुआ ! वो मेरे…
अल्पसंख्यक जैन समुदाय होने से हमें संवैधानिक सुरक्षा कवच प्राप्त संवैधानिक कवच १. जैन समुदाय के अल्पसंख्यक घोषित होने से संविधान के अनुच्छेद २५ से ३० के अनुसार जैन समुदाय धर्म, भाषा, संस्कृति की रक्षा संविधान में उपबन्धों के अन्तर्गत हो सकेगी। २. जैन धर्मावलम्बियों के धार्मिक स्थल, संस्थाओं , मंदिरों, तीर्थ क्षेत्रों एवं ट्रस्टों…
अध्यात्म विकास के आयाम गुणस्थान और परिणाम गुणस्थान एवं ध्यान गुणस्थान का संबंध गुण से है सहभुवो गुणाआलापपद्धति सू. ९२ साथ में होने वाले गुण है या जिनके द्वारा एक द्रव्य की दूसरे द्रव्य से पृथक् पहचान होती है वह गुण है। गुण्यते पृथक्क्रियते द्रव्यं द्रव्याद्यैस्ते गुणा:। वही ९३ अर्थात् जिसके द्वारा द्रव्य की पहचान…
साधक की शरीर के प्रति दृष्टि हमारी शरीर के प्रति कैसी दृष्टि होनी चाहिए— इस विषय में बहुत कम लोग चिन्तन करते हैं। प्राय: साधक देह के मोह में पँâस जाया करते हैं। शरीर पर इतना मोह क्यों है ? प्रश्न है कि जीव से शरीर पूर्ण होता है या जीव के बिना ? कुछ…
उत्तम क्षमा धर्म श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में क्षमा धर्म के विषय में कहा है उत्तम—खम मद्दउ अज्जउ सच्चउ, पुणु सउच्च संजमु सुतउ।चाउ वि आकिंचणु भव—भय—वंचणु बंभचेरू धम्मु जि अखउ।।उत्तम—खम तिल्लोयहँ सारी, उत्तम—खम जम्मोदहितारी।उत्तम—खम रयण—त्तय—धारी, उत्तम—खाम दुग्गइ—दुह—हारी।।उत्तम—खम गुण—गण—सहयारी, उत्तम खम मुणिविद—पयारी।उत्तम—खम बुहयण—चन्तामणि, उत्तम—खम संपज्जइ थिर—मणि।।उत्तम—खम महणिज्ज सयलजणि उत्तम—खम मिच्छत्त—तमो—मणि।जिंह असमत्थहं दोसु खमिज्जइ जिंह…
आर्जव धर्म का लक्षण मोत्तूण कुडिलभावं, णिम्मलहिदएण चरदि जो समणो । अज्जवधम्म तइओ, तस्स दु सभवदि णियमेण । । ७३ । । जो मुनि कुटिलभावको छोड्कर निर्मल हृदयसे आचरण करता है उसके नियमसे तीसरा आर्जव धर्म होता है । । ७३ ।। सत्यधर्मका लक्षण परसतावणकारणवयण मोत्तूण सपरहिदवयण । जो वददि भिक्खु तुरियो, तस्स दु धम्म…
भरत से भारत: कब ,क्यों और कैसे शैलेन्द्र जैन ‘शैलू’ सारांश हमारे देश का नाम भारतवर्ष कब,क्यों एवं कैसे पड़ा? इस संदर्भ में विद्वानों में किंचित भ्रम है। अधिकांश विद्वान प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र एवं बाहुबली के भाई भरत के नाम पर इसे भारत मानते हैं किन्तु कतिपय विद्वान दुष्यन्त एवं शकुन्तला के…
जैनाचार्यों द्वारा प्रणीत ग्रंथों में विज्ञान के तत्व संगीता मेहता एंव रजनी जैन सारांश जैनाचार्यों द्वारा ज्ञान विज्ञान के विविध क्षेत्रों में सहस्त्रों ग्रंथों का सृजन किया गया है। इनमें से कुछ प्रकाशित हो चुके हैं एवं शेष अद्यतन पांडुलिपियों में संरक्षित है अथवा नष्ट हो चुके हैं। प्रस्तुत लेख में हम जैनाचार्यों द्वारा प्रणीत…