अष्टमूलगुण मूलगुण क्या है? जिस प्रकार मूल (नींव) के बिना मकान नहीं टिक सकता, मूल (जड़) के बिना वृक्ष नहीं उग सकता, मूल (स्रोत) के बिना नदी, कुएँ, नहर आदि अपना नाम सार्थक नहीं कर सकते, उसी प्रकार मूलगुणों के बिना मनुष्य ‘श्रावक’ यह संज्ञा प्राप्त नहीं कर सकता। आधुनिक युग जहाँ अनुसंधानों की गहराइयों…
गुणस्थान क्या हैं ? मोह और योग के निमित्त से आत्मा के गुणों में जो तारतम्य होता है उसे गुणस्थान कहते हैं। ये गुणस्थान—१ मिथ्यात्व, २ सासादन, ३ मिश्र, ४ अविरत सम्यग्दृष्टि, ५ देश विरत, ६ प्रमत्त विरत, ७ अप्रमत्त विरत, ८ अपूर्व करण, ९ अनिवृत्ति करण, १० सूक्ष्म सांपराय, ११ उपशांत मोह, १२ क्षीण…
पंचमकाल में मुनियों का अस्तित्व अहो! दु:षमकालांतं श्रमणाश्चार्यिका इह। विहरन्ति निराबाधं कुर्युस्ते ताश्च मंगलम्।।१।। अहो! प्रसन्नता की बात है कि इस भरतक्षेत्र में दु:षमकाल के अंत तक मुनि और आर्यिकायें निराबाध विहार करते रहेंगे। वे मुनि और आर्यिकायें सदा मंगल करें। [ निर्ग्रंथ दिगम्बर मुनियों में जो जिनकल्पी और स्थविरकल्पी भेद हैं, उनका क्या स्वरूप…
ग्रंथों के अध्ययन-अध्यापन की शैली गुरूणां परिपाट्याहं, श्रुतं लब्ध्वा नयद्वयात्। निर्देशयामि भव्येभ्य:, जिनशासनवृद्धये।।१०।। गुरुओं की परम्परा से श्रुतज्ञान को प्राप्त करके मैं दोनों नयों के आश्रय से जिनशासन की वृद्धि के लिये भव्यों को उपदेश देऊँगा। ड अध्ययन अर्थात् ग्रंथों को पढ़ना और उसका मनन करना तथा अध्यापन अर्थात् शिष्यों को पढ़ाना, अभ्यास कराना। किसी…
[[श्रेणी:व्रतों_की_तिथि_का_निर्णय]] ==एकाशन के लिए तिथिविचार== ज्योतिष शास्त्र में एकाशन के लिए बताया गया है कि ‘मध्याह्नव्यापिनी ग्राह्या एकभत्तेâ सदा तिथि:’ अर्थात् दोपहर में रहने वाली तिथि एकाशन के लिए ग्रहण करनी चाहिए। एकाशन दोपहर में किया जाता है, जो एक भुक्तिका—एक बार भोजन करने का नियम लेते हैं, उन्हें दोपहर में रहने वाली तिथि में…
अंधे के हाथ में लालटेन पगडंडी गाँव की ओर जा रही थी। पगडंडी पर एक अंधा हाथों में लालटेन लिये आगे बढ़ रहा था । अंधे ने हाथ में लालटेन तो लिया है किन्तु लालटेन का प्रकाश पगडंडी पर पड़ रहा है। लेकिन अंधे के लिये प्रकाश का क्या महत्व। तभी सामने से आते हुए…
चारों अनुयोगों की सार्थकता द्वादशांग श्रुतं भाव-श्रुतञ्चाप्युपलब्धये। चतुरनुयोगाब्धौ मेऽनिशमन्तोऽवगाह्यताम्।।७।। द्वादशांग श्रुत और भावश्रुत की उपलब्धि के लिये चारों अनुयोगरूपी समुद्र में मेरा मन नित्य ही अवगाहन करता रहे। (जिनेन्द्र भगवान के मुखकमल से निर्गत पूर्वापर विरोधरहित जो वचन हैं उन्हें आगम कहते हैं। उसके ही प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग ये चार भेद हैं। इन…
श्री वासुपूज्य पूजा स्थापना दोहा वासुपूज्य जिनराज की, करूँ थापना आज। मंडल पर तिष्ठो प्रभो, पूरो…