मंत्र जाप्य!
[[श्रेणी:गौतम_गणधर_स्वामी]] ==मंत्र-जाप्य== ॐ ह्रीं श्रीगौतमगणधरस्वामिने नम:।
[[श्रेणी:गौतम_गणधर_स्वामी]] ==मंत्र-जाप्य== ॐ ह्रीं श्रीगौतमगणधरस्वामिने नम:।
[[श्रेणी:गौतम_गणधर_स्वामी]] [[श्रेणी:स्तोत्र]] ==श्री गौतमस्वामी की स्तुति== गणिनी ज्ञानमती नौमि गौतमस्वामिन् ! त्वां, वीरप्रभोर्गणीश्वरम्। सर्विद्धधारिणं देवं, चतुज्र्ञानसमन्वितम्।।१।। वीर दिव्यध्वनेर्हेतुं, गणाधीशं गणेशिनम्। द्वादशांगस्य कर्तारं, सज्ज्ञानद्र्धयै नमाम्यहम्।।२।।
पुरुषार्थ पुरुषार्थ से चमकता है किस्मत का सितारा,विश्वास करोगे तो जरुर मिलेगा किनारा। वैसे तो भोगों का चारों ओर दिखता है बोलबाला, त्याग करोगे तो मिलेगा भव का किनारा ।कोशिश से धूल में फूल खिल जाता है,कोशिश से मौसम अनुकूल मिला जाता है,अगर समुन्दर की लहरों से हार ना मानोतो तैरते ही स्वयं कूल मिल…
सदोष मणियों से जाप का फल माला की जिन मणियों से जाप करना हो या धारण करना हो वे निर्दोष होनी चाहिए अर्थात् गोल, चिकने, ठोस अथवा समानुपातिक कोण के होने चाहिए। यदि मणियां सदोष हैं तो उनके निम्न दुष्परिणाम हो सकते हैं— १. टूटा मोती — मन की चंचलता , व्याकुलता २. गड्ढेदार मोती…
किसी भी कार्य के प्रारंभ में इष्टदेव का नाम स्मरण करें आरंभे तु पुराणस्यान्यव्यापाराय कस्यचित्।‘‘नम: सिद्धेभ्य:’’ इत्युच्चैर्नम्रीभूतो वदेद्वच:।। अर्थ- किसी शास्त्र के प्रारंभ में तथा अन्य किसी भी कार्य के प्रारंभ में नम्रता के साथ ‘‘ॐ नम: सिद्धेभ्य:’’ इस पद का उच्चारण करना चाहिए।
क्या आप जानती हैं ? १. २५ ग्राम का एक गुलाबजामुन खर्च करने के लिये आपको ३० मिनट तक पैदल चलना पडे़गा। २. चाय बहुत पीने में आती है। कट चाय भी यदि ५० मि.ली. है तो उसमें जितनी कैलोरी होती है जिसे जलाने के लिये १० मिनट तक तेज चाल से चलना पड़ेगा। ३….
ऐसे पहनें गहने त्योहारों पर अच्छे पहनावे के साथ जेवर आपके पूरे व्यक्तित्व में चार चांद लगाते हैं लेकिन यह तब ही खूबसूरत लगेंगे जब यह रहें हमेशा चमकते—दमकते। ज्वेलरी को खास देखभाल की जरूरत होती है।
अनादिनिधन महामंत्र णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं । एसोपंचणमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगला णं च सव्वेसिं, पडमम हवई मंगलं । अर्हंतो मंगलं कुर्यु:, सिद्धा: कुर्युश्च मंगलम्। आचार्या: पाठकाश्चापि, साधवो मम मंगलम्।। ॐ नमो मंगलं कुर्यात्, ह्रीं नमश्चापि मंगलम्। मोक्षबीजं महामंत्रं, अर्हं नम: सुमंगलम्।। चत्तारि मंगलं-अरिहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहु…
संसारी जीव पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति इन भेदों से नाना प्रकार के स्थावर जीव है, ये सब एक स्पर्शन इन्द्रिय के ही धारक हैं तथा शंख आदि दो, तीन, चार और पाँच इन्द्रियों के धारक त्रस जीव होते हैं। पृथ्वी, जल, अग्नी, वायुकाय, औ वनस्पतिकायिक जानो।एकेन्द्रिय स्थावर पाँच कहे, इनके सब भेद विविध…