विन्ध्यगिरि पर खड़े गोम्मटेश बाहुबली डग भरने को हैं कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलूर से लगभग १८५ किलोमीटर दूर श्रवणबेलगोल नगर की विन्ध्यगिरि पहाड़ी पर भगवान् गोम्मटेश बाहुबली की मूर्ति पिछले १०२५ वर्षों से कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ी है। अपनी उतंगता, भव्यता और सौम्यता में यह अनुपम और अद्वितीय है। हिमालय के पर्वत—शिखर एवरेस्ट जैसी…
तीर्थंकर माता की सेवा करने वाली श्री आदि देवियाँ जम्बूद्वीप के हिमवान आदि छह कुलाचलों के पद्म आदि सरोवरों में रहने वाली श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी देवियाँ जम्बूद्वीप के भरत-ऐरावत व विदेह क्षेत्रों में होने वाले तीर्थंकरों की माता की सेवा के लिए आती हैं। ऐसे ही पूर्वधातकीखण्ड के सरोवरों की श्री…
ब्राह्मी-सुन्दरी ने दीक्षा क्यों ग्रहण की थी ? महापुराण के अन्तर्गत आदिपुराण ग्रन्थ के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी-सुन्दरी को युग की आदि में सर्वप्रथम विद्या ग्रहण कराया था अत: वे अपने पिता त्रैलोक्यगुरु के अनुग्रह से सरस्वती की साक्षात् प्रतिमा के समान बन गई थीं। पुन: भरत आदि पुत्रों को भी भगवान…
दिगम्बर जैन आम्नाय में मंत्र व्यवस्था सारांश द्वादशांग जिनवाणी के बारहवें दृष्टिवादांग के १४ पूर्वों में १०वाँ विद्यानुवाद पूर्व है जो तंत्र,मंत्र एवं यंत्र से सम्बद्ध है। आज भी मानव अलौकिक एवं आध्यामिक शक्तियों की आराधना में मंत्रों का प्रयोग करता है किन्तु मंत्र क्या हैं? मंत्रों का स्वरूप एवं उपयोग सा हो? क्या दिगम्बर…
सुरसुन्दरी से शिवसुन्दरी (काव्य छत्तीस से सम्बन्धित कथा) गगनचुम्बी अट्टालिका की सातवीं मंजिल पर राजकुमारी सुरसुन्दरी अपनी सखियों के साथ बैठी अठखेलियाँ कर रही थी। बीच-बीच में होने वाले हास-परिहास और अट्टहास से राह चलने वाले राहगीरों की पैनी नजरें अपने आप ऊपर उठ जाती और यद्यपि वे अपने गन्तव्य की ओर आगे कदम बढ़ाते,…
गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी एवं संस्कृत साहित्य के विकास में उनका योगदान जैनधर्म के अनुसार तीर्थंकर महापुरुषों की दिव्यध्वनि सात सौ अठारह भाषाओं में परिणत हुई मानी गई है इनमें से अठारह महाभाषाएं मानी गई हैं और सात सौ लघु भाषा हैं। उन महाभाषाओं के अन्तर्गत ही संस्कृत और प्राकृत को सर्वप्राचीन एवं प्रमुख भाषा…
गुणस्थानों में व्युच्छिन्न होने वाले आस्रवों की संख्या पंच चुद सुण्ण सत्त य पण्णर दुग सुण्ण छक्क छक्केक्कं। सुण्णं चदु सगसंखा पच्चयविच्छित्ति णायव्वा।।११।। पंच चतु: शून्यं सप्त च पंचदश द्वौ शून्यं षट्कं षट्वैककं एकं। शून्यं चतु: सप्तसंख्या प्रत्ययविच्छित्ति: ज्ञातव्या।। पहले गुणस्थान में ५, दूसरे में ४, तीसरे में शून्य, चौथे में ७, पाँचवें में १५,…