श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र कचनेर —जीवन प्रकाश जैन, जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर’ महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर से ३५ कि.मी. दूर कचनेर अतिशय क्षेत्र है जो पैठण (महा.) से ३० कि.मी. एवं औरंगाबाद से ३५ कि.मी. दूर अवस्थित है। यहाँ अतिशययुक्त, विघ्नविनाशक, मनोवांछित फलदायक श्री १००८ चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान है। उत्तरी भारत के…
वायव्य कोण का महत्व नारायण श्री कृष्ण ने अपने मुखारविन्द से वास्तु शास्त्र में भूखण्ड, फ्लैट, बंगला, कोठी आदि में उत्तर पश्चिम की जहाँ संधि होती है उस कोण को वायव्य कोण कहा है। वायव्य कोण की जानकारी देते हुए बताया गया है कि वायव्य कोण का अधिपत्य वायुदेव और ग्रह चंद्र हैं। इनका प्रभाव…
सुमेरू के नन्दनवन में बलभद्र आदि ९ कूट हैं-८ सुमेरू के नन्दनवन में बलभद्र आदि ९ कूट हैं-८ अथ नन्दनवनस्थव्यन्तरं सपरिकरमाह— बलभद्दणामकूडे णंदणगे मेरुपव्वदीसाणे। उदयमहियसयदलगो तण्णामो वेंतरो वसई१।।६२४।। बलभद्रनामकूटे नन्दनगे मेरुपर्वतैशान्याम्। उदयमहीकशतदलकः तन्नामा व्यन्तरो वसति।।६२४।। बलभद्द। मेरुपर्वतैशान्यां दिशि नन्दनस्थे शतोदयशतभूव्यासे तद्दलाग्रे बलभद्रनामकूटे बलभद्रनामा व्यन्तरो वसति।।६२४।। अथ नन्दनवनस्थवसतीनामुभयपाश्र्वस्थकूटादीन् गाथात्रयेणाह— णंदण मंदर णिसहा हिमवं रजदो य रुजयसायरया।…
आचार्य वीरसागर स्मृति ग्रंथ के आलेख सामयिक प्रश्नोत्तर प्रश्न १—क्या साधु मन्दिर, धर्मशाला या घर आदि में ठहर सकते हैं ? उत्तर—ठहर सकते हैं। चतुर्थ काल में भी ठहरते थे, ऐसे उदाहरण मौजूद हैं। यथा—‘‘एक समय सुरमन्यु, श्रीमन्यु, श्रीनिचय, सर्वसुन्दर, जयवान, विनयलालस और जयमित्र—ये सप्त ऋषि अयोध्या में आहारार्थ आये। ‘‘आहार के अनन्तर शुद्ध निर्दोष…