बण्डा के विद्वान!
पं. प्रकाशचन्द जैन “वैध” बरा चौराहा, शांति नगर बण्डा,जिला-सागर (म.प्र.)
पं. प्रकाशचन्द जैन “वैध” बरा चौराहा, शांति नगर बण्डा,जिला-सागर (म.प्र.)
डॉ. आदित्य प्रचण्डिया ‘दीति’ प्रोफेसर – हिन्दी दयालबाग,वि.वि., दयालबाग, आगरा काव्य रचना एवं लेखन पं.देवेन्द्र कुमार जी शास्त्री तीर्थधाम मंगलायतन, ‘विमलांचल’ हरिनगर, आगरा रोड, फैक्सः 0571-2410019/22 अलीगढ़-202 001(उ.प्र.) जैन दर्शन,पाण्डुलिपि संरक्षण फोन: 0571-2223391 मो.: 098977 75562 E-mail – info@mangalayatan.com श्री मनोज कु. जैन ‘निर्लिप्त’ पी.डब्ल्यू.डी.क्वार्टर नं. 52, समद रोड, अलीगढ़-202001(उ.प्र.) स्वतंत्र लेखन श्री राकेश कु….
श्री दीपचन्द गुलाबसा जैन रामनगर – एल.आर.टी., कामर्स कॉलेज के पीछे, सन्मति सदन, अकोला-444001(महा.) प्रवचन फोन: 0724-2457723 मो.:-098222 38732 डॉ. दिलीप यशवंत इंगोले जैन ’वात्सल्य’, खेडकर नगर, अकोला-444001(महा.) सम्पादन, पत्रकारिता, लेखन फोन: 0724- 2456631 मोबा.: 098500 82903 प्रो.वसंत लक्ष्मणराव लोखंडे गोरे अपार्टमेन्ट, क्र.1, आकाशवाणी के पीछे, अकोला-444001(महा.) जैन दर्शन, प्रवचन फोन:0724-2456874 मो.:-098229 51050 प्रो.यशवन्त चिंतामणि…
पूज्य श्री आत्मानन्द जी संस्थापक-श्रीमद् राजचन्द्र आध्यात्मिक साधना केन्द्र, हरीनगर सोसायटी, शाह आलम, अहमदाबाद-380015 जैन दर्शन डॉ. अनिल कुमार जैन बी-26,सूर्यनारायण सोसायटी, विसत पेट्रोल पम्प के सामने, साबरमती, 098195 11823 अहमदाबाद-380005 (सम्प्रति विदेश में है) जैन धर्म एवं विझान फोन:-079-27507520(नि.) मो.:-099250 09499 E-mail – aniljain57@hotmail.com इंजी. ज्ञानमल जैन शाह 77, राजेश्वरी कालोनी, केनाल रोड़, मणीनगर,…
[[श्रेणी:सूक्तियां]] सूक्ति न: १- सुई का काम करो , कैंची का नहीं अर्थात् परिवार- समाज और देश में हमेशा एक-दूसरे को जोड़ने का काम करना चाहिए , तोड़ने का नहीं ।
भक्तामर व्रत विधि विधि-जैन समाज में भक्तामर स्तोत्र सबसे अधिक प्रसिद्धि को प्राप्त है। इसकी महिमा के विषय में सभी लोग जानते हैं कि श्री मानतुंगमहामुनि ने इस स्तोत्र की रचना की है, एक-एक काव्य के प्रभाव से एक-एक ऐसे अड़तालीस ताले टूट गये हैंं और अतिशय चमत्कार हुआ है। यह श्री आदिनाथ भगवान का…
[[श्रेणी:सूक्तियां]] सूक्ति: १ पीयूषं न हि निःशेषं पिबन्नेव सुखायते अर्थात् अमृत की एक बूँद भी अमरता को प्रदान करने वाली होती है ।
चैत्य वन्दना मध्यलोक के चार शतक, अट्ठावन अकृत्रिम मंदिर । सबमें इक सौ अठ जिन प्रतिमा, वंदूँ मैं मस्तक नतकर ।। आठ कोटि औ छप्पन लाख, सहस सत्तानवे चार शतक । इक्यासी जिनगृह अकृत्रिम, तीन लोक के नमूँ सतत ।।१।। नव सौ पच्चीस कोटि त्रेपन, लाख सत्ताइस सहस प्रमाण । नव सौ अड़तालिस जिनप्रतिमा, शिव…
दश धर्म के मुक्तक उत्तम क्षमा- सब कुछ अपकार सहन करके, शत्रु पर पूर्ण क्षमा करना। यह क्रोध अग्नि को शीतल जल, इससे सब चित्त व्यथा हरना।। कमठासुर ने भव-भव में भी, उपसर्ग अनेकों बार किया। पर पाश्र्व प्रभू ने सहन किया, शांति का ही उपचार किया।।१।। उत्तम मार्दव– मृदुता का भाव कहा मार्दव, यह…