बंधन :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == बंधन : == स्वकं स्वकं प्रशंसन्त:, गर्हयन्त: परं वच:। ये तु तत्र विद्वस्यन्ते, संसारं ते व्युच्छ्रिता:।। —समणसुत्त : ७३४ जो पुरुष केवल अपने मत की ही प्रशंसा करते हैं तथा दूसरे के वचनों की निन्दा करते हैं और इस तरह अपना पांडित्य प्रदर्शन करते हैं, वे संसार में…