आत्मबोध :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार]] == आत्मबोध : == वदणियमाणि धरंता, सीलाणि तहा तवं च कुव्वंता। परमट्ठबाहिरा जे, णिव्वाणं ते ण विदंति।। —समयसार : १५३ भले ही व्रत, नियम को धारण करे, तप और शील का आचरण करे, किन्तु जो परमार्थ रूप आत्मबोध से शून्य है, वह कभी निर्वाण प्राप्त नहीं कर सकता।