एकीभाव (हिन्दी)
एकीभाव (हिन्दी) (१) एकीभावं गत इव मया य: स्वयं कर्म-बन्धो, घोरं दु:खं भव-भव-गतो दुर्निवार: करोति। तस्याप्यस्य त्वयि जिन-रवे! भक्तिरुन्मुक्तये चेज्- जेतुं शक्यो भवति न तया कोऽपरस्तापहेतु:।।१।। तर्ज-चन्दाप्रभु के दर्शन करने सोनागिरि को जाऊँगी..... हे जिनेन्द्रप्रभु! तुम भक्ती से, भवसागर को तरना है। मनमंदिर में तुम्हें बिठाकर, तन को स्वर्णिम करना है।।टेक.।। हे जिनसूर्य! मेरी आत्मा...