कर्मदहन स्तोत्र
कर्मदहन स्तोत्र शंभुछंद तर्ज - यह नंदनवन........... जय जय जिनमणि, जग चूड़ामणि, तुम कर्मरहित सिद्धीपति हो। मन वच तन से, सब सिद्धों के, चरणों में मेरी प्रणती हो।।जय.।। प्रभु चार अनंतानूबंधी, त्रय दर्शन मोह विनाश किया। क्षायिक सम्यक्त्वी मुनी बने, फिर क्षपक श्रेणि को मांड लिया।। गुणस्थान नवम में छत्तिस प्रकृती, नाश आप मुनिगणपति हो।।जय.।।१।।...