दिव्यध्वनि स्तोत्र
दिव्यध्वनि स्तोत्र दोहा द्वादशांग हे वाङ्मय! श्रुतज्ञानामृतसिंधु। वंदूं मन वच काय से, तरूँ शीघ्र भवसिंधु।।१।। शंभु छंद जय जय जिनवर की दिव्यध्वनी, जो अनक्षरी ही खिरती है। जय जय जिनवाणी श्रोताओं को, सब भाषा में मिलती है।। जय जय अठरह महाभाषाएँ, लघु सातशतक भाषाएँ हैं। फिर भी संख्यातों भाषा में, सब समझें जिन महिमा ये...