नाना-जीव एक-अजीव!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नाना-जीव एक-अजीव – Nana-Jiva Eka-Ajiva Pertaining to different types of living beings and one non-living beings अनेक जीव और एक अजीव ”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नाना-जीव एक-अजीव – Nana-Jiva Eka-Ajiva Pertaining to different types of living beings and one non-living beings अनेक जीव और एक अजीव ”
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सत्यवादी : == विश्वसनीयो मातेव, भवति पूज्यो गुरुरिव लोकस्य। स्वजन इव सत्यवादी, पुरुष: सर्वस्य भवति प्रिय:।। —समणसुत्त : ९५ सत्यवादी पुरुष माता की तरह विश्वसनीय, जनता के लिए गुरु की तरह पूज्य और स्वजन की भाँति सबको प्रिय होता है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुद्धात्मानुभव – Shuddhaatmaanubhava. The supreme experience, A synonym word for Mokshmarg (path of salvation). शुद्ध आत्मा का अनुभव या संवेदन होना, मोक्षमार्ग या निर्विकल्प समादी का अपरनाम “
[[श्रेणी: शब्दकोष]] मंदप्रबोधिनी:A commentary book written by Acharya Abhaychandra on Gommatsara Granth. आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती कृत गोमटसार ग्रंथ पर आचार्य अभयचन्द्र ( ई.श. 13 अन्त) कृत टीका “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नागहस्ती – Nagahasti Name of great saint. आचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबली के समकक्ष के एक मुनि ” व्यग्रहस्ती के शिष्य और जीत्दंड के गुरु (समय ई. 93-162) ”
[[श्रेणी : शब्दकोष]] मय – Mya. Father’s name of Mandodari, A king of Yadav dynasty. मंदोदरीकेपिताकानाम , यदु (यादव) वंशकाएकराजा “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] विजयोदया टीका – Vijayodayaa Tikaa.: Name of a commentary book of ‘Bhagvati Aradgana Granth’ written by Acharya Aparajit. आचार्य अपराजित(ई.श. 7) द्वारा रचित भगवती आराधना ग्रन्थ की विस्तृत संस्कृत टीका “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सद्रूप – Sadruupa. Property of sameness or similarity. वस्तु मे पाये जाने वाले अनेक धर्मों मे एक धर्म-सदृशधर्म।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == संघ : == संघो गुणसंघात:, संघश्च विमोचकश्चकर्मणाम्। दर्शनज्ञानचरित्राणि, संघातयन् भवेत् संघ:।। —समणसुत्त : २५ गुणों का समूह संघ है। संघ कर्मों का विमोचन करने वाला है। जो दर्शन, ज्ञान और चारित्र का संघात (रत्नत्रय की समन्विति) करता है, वह संघ है। कर्मरजजलौघविनिर्गतरस्य, श्रुतरत्नदीर्घनालस्य। पंचमहाव्रतस्थिरर्किणकस्स, गुणकेसरवत:।। श्रावकजन—मधुकर—परिवृतस्य, जिनसूर्यतेजोबुद्धस्य। संघपद्मस्य…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुद्ध सदभूत नय – Shuddha Sadbhoota Naya. A standpoint related to the distinction between pure matter and its pure virtues. शुद्धगुण व शुद्धगुणी में अथवा शुद्धपर्याय व शुद्धपर्यायीमें भेद का कथन करना शुद्ध सदभूत व्यवहार नय है ” जैसे- सिद्ध भगवान में केवलज्ञान “