भवनत्रिक देव!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भवनत्रिक देव – Bhvanatrika Deva. Three type of deities (Vyantar, Jyotishka, Bhavanvasi). व्यंतर, ज्योतिष्क, भवनवासी ३ निकायों के देव को भवनत्रिक कहते हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भवनत्रिक देव – Bhvanatrika Deva. Three type of deities (Vyantar, Jyotishka, Bhavanvasi). व्यंतर, ज्योतिष्क, भवनवासी ३ निकायों के देव को भवनत्रिक कहते हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] रस़ऋद्धि – एक ऋद्धि, यह उग्र तपस्या से प्राप्त होती है। Rasa Rddhi- A type of super natural power
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वराह – Varaah.: Rhinoceros, significant symbol of Lord Shreyansnath , Name of a city in the north of Vijayardh mountain. गैंडा ,भगवान् श्रेयांसनाथ का चिन्ह , विजयार्ध की उत्तर श्रेणी का एक नगर “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वप्र – Vapra.: A country of western Videh Kshetra (region), Name of a summit of Chandragiri Vakshar (mountain) & its deity. पश्चिम विदेह का एक देश ,चन्द्रगिरि वक्षार एक कूट व उसका स्वामी देव “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भर्तृहरी – Bhartrhari. The elder brother of king Vikramaditya, Name of the younger brother of Acharya Shubhachandra. राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई, आचार्य शुभचन्द्र के छोटे भाई, जिन्होंने तापस होकर १२ वर्ष तपश्चरण कर स्वर्ण बनाने की सिद्धि प्राप्त की बाद में शुभचन्द्राचार्य से संबोधित होकर दिगम्बर दीक्षा धारण की “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विषंग – Vishanga. A kind of delusive relation (family attachments). स्त्री आदि सब मेरे हैं, इस प्रकार का सम्बन्ध विषग कहलाता है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नोजीव – Nojeeva. A body (one well versed in scripturess) without soul . अनंतानंत विस्रसोपचयों से उपचय को प्राप्त कर्मपुदगल स्कन्ध (शरीर) प्राणधारक अथवा ज्ञानदर्शन से रहित होने के कारण नोजीव कहलाता है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] रत्नि – क्षेत्र का प्रमाण विषेश। एक हाथ का परिमाण 2 वितस्ति=1 हाथ। इसका मूल नाम अरत्नि है। Ratni- A measurement unit of area
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शीलपाहुड – Sheelapaahuda. Name of a great treatise written by Acharya Kundkund आचार्य कुन्दकुन्द (ई. 127-179) कृत ज्ञान व चारित्र का समवन्यात्मक 40 प्राकृत गाथा निबद्ध ग्रंथ “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नोकर्म – Nokarma. Grossbody etc. are called Nokarma. नामकर्म के उदय से प्राप्त होने वाला औदारिक आदि शरीर जो जीव के सुख में निमित्त बनता है वह नोकर्म कहलाता है “