योग्य क्षेत्र!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] योग्य क्षेत्र – पर्वत, गुहा, वृक्ष की कोटर , नदी का तट, नदी का पुल आदि समस्त ध्यान के योग्य स्थान। Yogya Ksetra-Suitable area or space for meditation
[[श्रेणी:शब्दकोष]] योग्य क्षेत्र – पर्वत, गुहा, वृक्ष की कोटर , नदी का तट, नदी का पुल आदि समस्त ध्यान के योग्य स्थान। Yogya Ksetra-Suitable area or space for meditation
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रणिधान – Pranidhaana. Concentrating the mind on particular object. स्मरण की इच्छा से मन को एक स्थान में लगाने का ‘नाम’ प्रणिधान है ” परिणाम, प्रयोग व प्रणिधान ये एकार्थवाची शब्द है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] यौवराज्य क्रिया – गर्भान्वय की 53 क्रियाओ में एक क्रिया, इसमें युवराज को अभिशेक राजपटट् वाधा जाता है। Yauvarajya Kriya-An auspicious activity of enthronement
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रच्छन्न – Prachchhanna. Hidden, concealed, an infraction of self-criticism-asking for the repentance of own fault indirectly. आच्छादित, छिपा हुआ, आलोचना का एक दोष; प्रच्छन्न रूप से किये गये पाप के प्रायश्चितका उपाय पूछना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] रत्नकरंडश्रावकचार – आचार्य समन्तभद्र ं(इ्र, ष, 2) कृत एक संस्कृत ग्रंथ Ratnakaramdasravakacara-Name of a treatise written by Acharya Samantbhadra
[[श्रेणी : शब्दकोष]] ब्रह्मेश्वर – Brahmesvara. Name of the ruling demigod of Lord Shitalnath. शीतलनाथ भगवान का शासन यक्ष “
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मेघंकरी– Meghankari. The female divinity of Nanadankut (a summit) of Nandan forest. नन्दनवन के नन्दंकुट कीस्वामिनी एक दिक्कुमारी देवी”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सचित्त पाहुड़ – Sachitta Paahura. Animate gifts (pertaining to living objects). निक्षेप रूप पाहुड़ का एक भेद; उपहार रूप से भेजे गये हाथी, घोडा और स्त्री आदि सचित्त पाहुड़ है “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == माया : == सच्चाण सहस्साण वि, माया एक्कावि णासेदि। —भगवती आराधना : १३८४ एक माया हजारों सत्यों का नाश कर डालती है। माया तैर्यग्योनस्य। —तत्त्वार्थ सूत्र : ६-२७ माया तिर्यंच योनि को देने वाली है। (तिर्यंच माया के कारण ही बांके होकर चलते हैं।)
[[श्रेणी:शब्दकोष]] भेदज्ञान:Discriminating science (knowledge).जीवादि सातों तत्वों में सुखादि की अर्थात् स्व तत्व की स्वसंवेदनगम्य पृथक् प्रतीति होना ” अथवा स्व पर पदार्थो का यथार्थ ज्ञान होना “