प्राच्य!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्राच्य- पूर्व दिषा। प्रत्येक षुभ कार्य में प्राची दिषा की प्रधानता होती है। Pracya- east direction (to have importance)
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्राच्य- पूर्व दिषा। प्रत्येक षुभ कार्य में प्राची दिषा की प्रधानता होती है। Pracya- east direction (to have importance)
झारी A pitcher having a long neck & a spout, to be kept near the idol of Lord Jinendra. जिनेन्द्र देव की प्रतिमाओं के समीप वि?मान रहने वाले अष्ट मंगल द्रव्यों में से एक, इस झारी से भगवाना का अभिषेक भी किया जाता है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] बहिरंग शुद्धि- शरीर और वचनों से दोा मुक्त होना। Bahiranga suddhi- External purity (reg. body & speech)
आह्लाद Cheer, Joy, Exultation, Merriment.सुख, खुशी, हर्ष, प्रसन्नता।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
दासत्व Servitude; being in the service of God. सेवकपने की भावना सम्यग्दृष्टि का वात्सल्य गुण सिद्ध प्रतिमा, जिनबिम्ब, जिनमन्दिर, चार प्रकार के संघ में और शास्त्रों में वात्सल्य भाव भी दासत्व कहलाता है। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] बालकन्या- मिथ्यादृष्टि आदि को अज्ञानी अथवा बाल कहते है। Balakanya- An innocent or immatured girl
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यक्षवर(सागर द्वीप)– Yakshvar (Saagar Dvip). Name of a island and ocean of middle universe. मध्यलोक के अंतिम सौलह द्वीपों में तेरेहवा द्वीप व समुंद्र”
आधार Base, Support. मूल स्थान, आकाश द्रव्य- सर्व द्रव्यों को अवगाहन (आधार) देता है परन्तु वह स्वंय अपना आधार है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
गति बन्धाभाव Lack of binding of any Karmic nature related to any Gati for the next birth (i.e. lack of transmi-gration), Motion without constraint. आगे के भव के लिए चारों गतियों के बन्ध का अभाव होना ,गति का एक भेद ; एरण्ड बीज आदि की गति ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]