निरर्वर्त्यकर्म!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निरर्वर्त्यकर्म – Nirvartyakarma. New research by a performer, to produce something new. कर्ता के द्वारा जो पहिलें न हो ऐसा नवीन कुछ उत्पन्न किया जाना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निरर्वर्त्यकर्म – Nirvartyakarma. New research by a performer, to produce something new. कर्ता के द्वारा जो पहिलें न हो ऐसा नवीन कुछ उत्पन्न किया जाना “
थावर प्रतिमा Stable image of any thing. व्यवहार से चंदन, कनक, महामणि, स्फटिक आदि से बनी प्रतिमा थावर कहलाती है। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
आस्रव त्रिभंगी A book on karmic theory, Hindi translation of which is done by Ganini Shri Gyanmati Mataji. कर्म सिद्धान्त विषयक एक ग्रन्थ । इसका हिन्दी अनुवाद गणिनी श्री ज्ञानमति माताजी कृत है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] बाह्य हेतु – Bahya Hetu. External causes. बाहरी निमित या कारण ” जैसे – अन्य द्रव्यों के (बाह्याहेतुरूप) संयोग से आत्मा का रागदिरूप परिणमन होना “
त्रैराशिकवाद Doctrine related to the conception of trio thoughts (like Jiva, Ajiva, Jiva-ajiva etc.). सर्व वस्तुओं को त्रयात्मक मानना अर्थात् तीन राशियों द्वारा चरण करने का सिद्धान्त जैसे जीव, अजीव , जीवाजीव, लोक , अलोक लोकालोक आदि। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
आसुरी Pertaining to evil spirits, A type of low status deities. निम्न वृत्ति सहित नीच गति के देवों में एक।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निर्मलनाथ – Nirmalanaatha. Name of the 16th predestined Tirthankar. भावीकालीन 16 वें तीर्थंकर का नाम (श्रीकृष्ण का जीव) “
त्रिवेदसिद्ध Beings salvated from all genders (in accordance with Bhavved). भाववेद की अपेक्षा जो तीनों वेदों से सिद्ध होते हैं त्रिवेदसिद्ध कहलाते है । द्रव्य से पुरूष वेदी, भाव से स्त्री वेदी एंव नपुंसक वेदी भी सिद्ध पद को प्राप्त कर सकते है। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
आहारक समुद्घात Bondage of Aharak Vargana for the formation of translocational body (Aharak Sharir). सूक्ष्म तत्व के विषय में जिसे जिज्ञासा उत्पन्न हुई है उन परम ऋषि के मस्तक में से मूल शरीर से सम्पर्क बनाये रखकर एक हाळा ऊँचा सफेद रंग का सवाँग सुन्दर पुतला निकलकर अन्तर्मुहुर्त में जहाँ कहीं भी केवली भगवान को…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निर्देश – Nirdesha. Instruction, Direction. आदेशपूर्वक किसी बात को कहना, विवक्षित वस्तु के स्वरूप का कथन करना “