सयोगकेवली!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सयोगकेवली – Sayogakevalee. An omniscient possessing physical presence. सशरीरी परमात्मा। 13 वें गुणस्थान मे अरहंत परमात्मा जो अनंत चतुष्टय सहित परमौदारिक देह सहित है, जिनका उपदेष व विहार होता है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सयोगकेवली – Sayogakevalee. An omniscient possessing physical presence. सशरीरी परमात्मा। 13 वें गुणस्थान मे अरहंत परमात्मा जो अनंत चतुष्टय सहित परमौदारिक देह सहित है, जिनका उपदेष व विहार होता है।
चामत्कारिक Astonishing, Amazing, Surprising. आश्र्चर्य या अतिशयकारी ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्पृष्ठता – Spastataa. Clearness, Unambiguity, Obviousness.निर्मलता, विशदता, स्पष्टता एकार्थवाची है।
चंदानुशासन Name of a book (reg. prosody). छंद शिक्षा विषयक एक ग्रन्थ का नाम ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्पर्षन क्रिया – Sparssana Kriyaa. Touching activity, tangibility.समप्रायिक आस्रव की 25 क्रियाओ मे कर्मबंध की कारणभूत एक क्रिया। अत्यधिक प्रमादी होकर स्पर्श योग्य पदार्थ का बार बार चिंतन करना अथवा प्रमाद से आलिंगन करने की भावना स्पर्शन क्रिया है।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विदेह – Videha. Salvated souls, free from birth & death cycle. देह रहित सिध्द भगवान विदेह कहलाते हैं ” अथवा देह में रहते हुए भी जो जन्म – मरण से रहित हैं ऐसे अर्हत भगवान विदेह हैं “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == मांसाहार : == मांसाशनेन वर्धते दर्प: दर्पेण मद्यम् अभिलषति। द्युतम् अपि रमते तत: तद् अपि र्विणतान् प्राप्तनोति दोषान्।। —समणसुत्त : ३०४ मांसाहार से दर्प बढ़ता है। दर्प से मद्यपान की इच्छा जागती है। इससे जुआ खेलने में भी मन रमता है। अत: अकेले मांसाहार के दोष से यहां…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्नायु – Snaayu. Ligament, sinew, Fibrous tissue which unites muscles to bone.मंास-पेषियो को अस्थियो से जोड़ने वाला ऊतक, औदारिक शरीर मे स्नायु का प्रमाण 900 है।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वैदूर्यसागर द्वीप –VAiduryasagaraDvipa. Name of an island and an ocean of middle universe मध्यलोक के सागर और द्वीप का नाम “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == मृत्यु : == सीहस्स कमे पडिदं, सारंगं जह ण रक्खदे को वि। तह मिच्चुणा य गहिदं जीवं पि ण रक्खदे को वि।। —द्वादशानुप्रेक्षा : २४ जैसे सिंह के पैर के नीचे पड़े हुए हिरण की कोई भी रक्षा करने वाला नहीं होता, वैसे ही मृत्यु के द्वारा ग्रहण…