एषणाशुद्धि!
एषणाशुद्धि Purification of food from 14 specified faults. आहार शुद्धि- 14 मल दोषों से रहित सावधानीपूर्वक संयमी जन को आहार दान देना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
एषणाशुद्धि Purification of food from 14 specified faults. आहार शुद्धि- 14 मल दोषों से रहित सावधानीपूर्वक संयमी जन को आहार दान देना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भद्रावलि – Bhadravali. The 76th chief disciple of Lord Rishabhadev. तीर्थकर वृषभदेव के ७६ वें गणधर का नाम “
एंवभूत Specific, Such as intrinsically genuine, A stand-point of exact understanding or perception. एक नय, जिस शब्द का जिस क्रियारूप अर्थ हो उसी क्रियारूप परिणमित पदार्थ को ग्रहण करना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == समर्थ : == महिऊण महाजलिंह महुमहणो तत्थ सुयइ वीसत्थो। एयं नीइविरुद्धं छज्जइ सव्वं समत्थाणं।। —गाहारयणकोष : १८२ महासमुद्र का मंथन करके विष्णु वहीं सुखपूर्वक सोते हैं। ऐसे नीतिविरुद्ध कार्य (किसी का घर उजाड़कर वहीं शरण लेना) तो समर्थ को ही शोभा देते हैं।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] बीजना – Bijana. Hand – fan, one of the 8 auspicious symbols, which is always kept near the idol of LordJinendra. हाथ का पंखा, जिन – प्रतिमाओं के पास विधमान रहने वाले अष्ठ मंगल द्रव्य में एक द्रव्य “
दुःश्रुति Listening false scriptures (related to misguiding or instigating). अनर्थदण्ड का एक भेद। चित को मलिन करने वाले शाखों का सुनना। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्वपर विवेक – Svapara Viveka. Right & real knowledge (discriminating self & others).सम्यग्दर्शन, जीव-अजीव की पहचान अर्थात् वस्तु स्वरुप का ज्ञान।
जयकीर्ति Name of the 10th predestined Teerthankar (Jaina Lord), An Acharya of Kashthasangh (a group of Jaina saints). भावीकालीन १०वें तीर्थंकर , काष्ठासंघ के आचार्य ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
जयकुमार The son of king Somprabh, who was the army-chief of Bharat Chakravarti, Name of a chief disciple of Lord Adinath. कुरुवंशी राजा सोमप्रभ का पुत्र , भरत चक्रवर्ती का सेनापति , आदिनाथ भगवान का ७१वाँ गणधर ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्वकाल निर्जरा – Srakaala Nirjaraa. Destruction of Karmas on their maturation.निर्जरा के दो भेदो मे एक भेद, सविपाक निर्जरा जो स्वकाल पक्च होकर चारो गति वाले जीवो की होती है।