महावीर स्तवन
महावीर स्तवन (जीवन्धर स्वामी द्वारा विरचित) स्वहस्तरेखासदृशं जगन्ति, विश्वानि विद्वानपि वीर्यपूर्ति: अश्रात:| मूर्ति र्भगवान्स वीर: पुष्णातु न: सर्वरागीहितानि।। अर्थ-जो समस्त संसार को अपनी हाथ की रेखा के समान जानते हुए भी कभी श्रान्त शरीर नहीं होते हैं तथा वीर्य की पूर्णता से सहित हैं वे भगवान् महावीर हमारे समस्त मनोरथों को पुष्ट करें। दिव्यागमत्याजसुधा स्रवन्ती।...