नवोदित भावना
नवोदित भावना शंभु छंद रे मन! तेरी चंचलता पर, विश्वास न मुझको आता है। मैं चाहूँ आत्म मगन होना, तू उसको क्यों भरमाता है।। मैं तेरे वश में रहा सदा, अब तू मेरे वश में आ जा। सांसारिक बातों से हटकर, अब तू भी शिवपथ में आ जा।।१।। तूने अपने संग पाँच-पाँच, इन्द्रिय सखियों को...