भक्ति!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भक्ति – Bhakti. Eulogical devotion for Lord. अर्हत आदि के गुणों में अनुराग रखना भक्ति है अथवा निज परमात्म तत्त्व के सम्यक् श्रध्दान – अवबोध – आचरण स्वरूप शुद्ध रत्नत्रय परिणामों में अनुरक्त रहना “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भक्ति – Bhakti. Eulogical devotion for Lord. अर्हत आदि के गुणों में अनुराग रखना भक्ति है अथवा निज परमात्म तत्त्व के सम्यक् श्रध्दान – अवबोध – आचरण स्वरूप शुद्ध रत्नत्रय परिणामों में अनुरक्त रहना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वाचा लोभ विवेक – Vaachaa Lobh Vivek .: Discrimination related to greed (not to make false statement or to speak lie). विवेक का एक भेद, इस वस्तु या ग्राम आदि का मैं स्वामी हूँ ऐसे वचन उच्चारण न करना “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भवभिघ – Bhavabhidya. One destroyer of worldy transmigration, An epi- thet for the devotional prayer of Lord Arihant. संसार का भेदन करने वाली जिनभक्ति का विशेषण “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वाङ्मय – Vaandmaya.: Combination of overall grammer,metre& figures of speech. व्याकरण शास्त्र ,छंद शास्त्र और अलंकार शास्त्र इन तीनो के समूह को वाङ्मय कहते हैं “भगवान ऋषभदेव ने अपनी पुत्रिओं –ब्राह्मी ,सुंदरी को इस का अध्ययन कराया था “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचशिखरी – Panchashikharee. Mountains having 5 summits are called Panchashikhari. अनच कूटों से सहित होने के कारण हिमवान, महाहिमवान निषधपर्वत को पंचशिखरी कहते है “
द्वीपसागरप्रज्ञप्ति A type of scriptural knowledge (shrutgyan). अंग श्रुतज्ञान का एक भेद, दृष्टिवाद (12 वें अंग) का एक भेद; जिसमें असंख्यात द्वीप व सागरों का 52 लाख 36 पदों में वर्णन है। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वाक् (वचन) – Vaak (Vachana). Different types of speech. शुभ –अशुभ रूप बोलने अथवा उच्चारण करने की क्रिया “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंचमावगमेश – Panchamaavagamesha. Omniscient one. पंचमज्ञान, केवलज्ञान के स्वामी “
उपेक्षा Indifference, Negligence, Overlooking . रागद्वेष रूप परिणामों का नहीं होना वैराग्य संबंध न रखना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वसुमित्र – Vasumitra.: Name of the 36th chief disciple of Lord Rishabhdev,Name of the chieftain of Shak dynasty. तीर्थंकर ऋषभदेव के 36वें गणधर “मगध देश की राज्य वंशावली अनुसार यह शक जाति का सरदार था ,अपरनाम बलमित्र अग्रिमित्र का समकालीन था ,समय –वी. नि. 285-345 “