एक-अजीव कर्म!
एक-अजीव कर्म Karmas related to non soul matters. द्रव्य कर्म- कार्मण स्कंधों की अवस्था अजीव कर्म है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
एक-अजीव कर्म Karmas related to non soul matters. द्रव्य कर्म- कार्मण स्कंधों की अवस्था अजीव कर्म है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भावस्तवन – Bhavastavana. Eulogical praising of Lord Jinendra. जिनेन्द्र भगवान के गुणों का स्मरण करना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सामान्य ज्ञान – Saamaanya Gyaaana. General knowledge. द्रव्य सामान्य मात्र को ग्रहण करने वाला ज्ञान ।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विदारण क्रिया – Vidarana Kriya. Exposing others’ sinful activities. साम्परायिक आस्रव की १८ वीं क्रिया ” दुसरे ने जो सावध कार्य किया हो उसे प्रकाशित करना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सानत्कुमार – Saanatkumaara. See-Sanatkumaara. देखें -सनत्कुमार ।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] ब्रह्मचर्य प्रतिमा – Brahmacarya.Pratima. Seventh model stage of celibacy of Jaina lay- follower. श्रावक की सातवीं प्रतिमा; इसमें श्रावक स्त्रीमात्र का त्याग होकर पूर्ण ब्रह्मचर्य से रहता है ” इसका धारक श्रावक अपने पुत्र – पुत्रियों के विवाह के अतिरिक्त अन्य किसी के विवाह की अनुमोदना नहीं करता है “
[[श्रेणी: शब्दकोष]] परमेष्ठी (कवि):A poet who wrote the book ‘Vagarthasangraha’.वागर्थसंग्रह पुराण की रचना करने वाले एक कवि ।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सूक्ष्म कषाय : == कौसुम्भ: यथा राग:, अभ्यन्तरत: च सूक्ष्मरक्त: च। एवं सूक्ष्मसराग:, सूक्ष्मकषाय इति ज्ञातव्य:।। —समणसुत्त : ५५९ कुसुम्भ के हल्के रंग की तरह जिनके अन्तरंग में केवल सूक्ष्म राग शेष रह गया है, उन मुनियों को सूक्ष्म—सराग या सूक्ष्म—कषाय जानना चाहिए।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सत्य : == अकिंहतस्स वि जह गहवइणो जगविस्सुदो तेजो। —भगवती आराधना : ३६१ अपने तेज का बखान नहीं करते हुए भी सूर्य का तेज स्वत: जगविश्रुत है। सच्चं जसस्स मूलं, सच्चं विस्सासकारणं परमं। सच्चं सग्गद्दारं सच्चं, सिद्धीइ सोपाणं।। —धर्मसंग्रह टीका : २-२६ सत्य यश का मूल कारण है।…