जनादर्शन!
जनादर्शन A Marathi poet and writer of ‘Shrenik Charit’, An epithet of Vishnu. मराठी कवि , श्रेणिक चरित के रचयिता (ई. १७६८) , विष्णु को भी जनादर्शन कहते हैं ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
जनादर्शन A Marathi poet and writer of ‘Shrenik Charit’, An epithet of Vishnu. मराठी कवि , श्रेणिक चरित के रचयिता (ई. १७६८) , विष्णु को भी जनादर्शन कहते हैं ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्यादवक्तव्य – Syaadavaktavya. The 4th bhang of saptbhangi-exposition of the nature of the substance in the aspect of indescribability. सप्तभंगी का चैथा भंग, द्रव्य स्वद्रव्य क्षेत्र काल भाव से और परद्रव्य क्षेत्र काल भाव से युगफद् कथन न किया जाने से कथंचित् अवक्तव्य है।
द्वितीय गुणहानि A decreasing series. प्रथम गुणहानि से जहां द्रव्य चय आदि का प्रमाण आधा पाया जाता है। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
तत्सेवी A fault of criticism. आलोचना का एक अतिचार। बडे प्रायश्चित से बचने हेतु पाश्र्वस्थ मुनि का गुरू के पास न जाकर पाश्र्वस्थ मुनि के पास अपने दोष कहना। [[श्रेणी:शब्दकोष]]
द्वापुरी Name of the birth city of the 2nd Narayana ‘Dviprashtha’. द्धितीय नारायण द्विपृष्ठ की जन्म नगरी का नाम।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
जघन्य योगस्थान Lowest grade of vibratory activity of soul. स्थान प्ररूपणा के अनुसार श्रेणि के असंख्यातवें भाग मात्र जो असंख्यात स्पर्धक हैं उनका एक जघन्य योग स्थान होता है ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सव्यभिचार – Savyabhichaara. A vallacy causing both favour & opposition, an inconclusive fallacy. एक हेत्वाभास । पक्ष व विपक्ष दोनों को स्पर्ष करने वाला हेतु । यह साधारण, असाधारण व अनुपसंहारी तीन प्रकार का होता है।
आलोचना Criticism (assessment of self). गुरु के पास अपने अपराधों को कहना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
जघन्य अंतरात्मा Beings with right faith but not observing vows. तत्त्व श्रद्धा के सात्घ व्रतों को न रखने वाले अविरत सम्यग्दृष्टि जीव ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]