संख्यात भागवृद्धि!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संख्यात भागवृद्धि – Sankhyaata Bhaagavriddhi. Finite increase in any number. किसी संख्या का संख्यात भाग किसी में बढ़ाना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संख्यात भागवृद्धि – Sankhyaata Bhaagavriddhi. Finite increase in any number. किसी संख्या का संख्यात भाग किसी में बढ़ाना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रसुप्त दशा- सोया हुआ, प्रगाढ़ निद्रा की अवस्था। Prasupta Dasa- Dormant state, state of sound sleep
[[श्रेणी:शब्दकोष]] बहुविध मतिज्ञानावरण- बहुविध मतिज्ञान पर आवरण करने वाला कर्म। Bahuvidha Matijnanavarana- An occurring Karma of sensory knowledge
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संक्षेप सम्यक्तवार्य – Sankshepa Samyaktvaarya. See – Sankshepa Darshanaarya. देखें – संक्षेप दर्शनार्य “
गणधर Chief disciple (Gandhar) of Teerthankar (Jaina lord). तीर्थंकर के प्रमुख शिष्य इनके अन्य नाम गणी, गणीश ,गणपति ,गणेश आदि भी हैं। ये समस्त श्रुत के पारगामी, सातों ऋद्धियों के धारक, मुनियों के स्वामी एवं चार ज्ञानधारी होते हैं। [[महावीर स्वामी के गणधर]] [[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विशेष उपयोग – Vishesha. Special consciousness. ज्ञानोपयोग या साकारोपयोग, जो सामान्य – विशेशात्म्क पदार्थो के आकार को ग्रहण करे अर्थात् ज्ञान पदार्थो को विशेष करके जानता है “
दिगवलोकन An infraction of meditative relaxation (Kayotsarga) (to watch in all directions). कायोत्सर्ग का एक अचिार, आठों दिशाओं की तरफ देखना। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] बंध समुत्पत्तिक- जिन सत्कर्म स्थानों की उत्पत्ति बन्ध से होती है, उन्हें बन्ध समुत्पत्तिक कहते है। Bandha Samutpattika- meritorious places caused due to binding of karmas
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विवर – Vivara. The opening, cracks, holes, The big holes in the bottom of Lavan ocean celled as patal (Lower world). दरार, छिद्र, अंतराल, स्थान, अवकाश, लवण, समुद्र की तली में स्थित बड़े –बड़े खड, जिन्हें पाताल भी कहते हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] षोडशकारण भावना – Sodashakaarana Bhaavanaa. Sixteen spiritual reflections (sentiments causing to be Tirthankar(Jaina-Lord)). तीर्थंकर प्रकृति की कारणभूत दर्शनविशुद्धि आदि 16 भावनाएं ” दर्शन विशुद्धि, विनय संपन्नता, शीलव्रतों में अनतिचार (शीलव्रतेष्वनतिचार), अभीक्ष्णज्ञानोपयोग, संवेग, शक्तिस्ततप, शक्तितस्त्याग, साधु समाधि, वैयावृत्यकरण, अर्हंत भक्ति, आचार्यभक्ति, बहुश्रुत भक्ति, प्रवचन भक्ति, आवश्यक अपरिहाणि, मार्ग प्रभावना एवं प्रवचन वत्सलत्व “