नाना गुणहानी!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नाना गुणहानी – Nana Gunahani Various geomaetric regressions गुणहानियों के समूह को नानागुणहानी कहते है ”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नाना गुणहानी – Nana Gunahani Various geomaetric regressions गुणहानियों के समूह को नानागुणहानी कहते है ”
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == साधना : == तस्य न कल्पते भक्त—प्रतिज्ञा, अनुपस्थिते भयं पुरत:। स मरणं प्रेक्षमाणं:, भवति हि श्रामण्यनिर्विण्ण:।। —समणसुत्त : ५७३ (किन्तु) जिसके सामने (अपने संयम, तप आदि साधना का) कोई भय या किसी भी तरह की क्षति की आशंका नहीं है, उसके लिए भोजन का परित्याग करना उचित नहीं…
उपशांतकरण Immaturity of Karmas.कर्म की उदयावली में आने की असमर्थता होना अर्थात् उदय में न आना, दबे रहना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नागसेन – Nagasena Name of the saint possessing knowledge of 11 Angas nad 10 Purvas, a writer of ‘Tattvanushaan. भद्रबाहु प्रथम के पश्चात् पाँचवे 11 अंग व 10 पूर्व धारी मुनि (वी.नि. 229-247 )” इनका अपरनाम नाग है ”
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भूपाल चतुर्विशतिका – Bhupala chaturvishtika. Name of a treatise written by pandit Ashadhar. पं. आशाधर (ई. ११७३-१२४३) कृत एक ग्रंथ का नाम “
आयंबिल An austerity with single item food, Tasteless food. स्वाद रहित, रूखा भोजन, नीरस भोजन।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्वपर चारित्र – Svapara Caaritra. Perfect and imperfect right conduct.निश्चय व्यवहार चारित्र। निज शुद्वात्मा के संवेदन मे अनुचरण करना अर्थात् समता भाव स्वचारित्र तथा शुद्वात्म रुप से रहित होकर रागभाव रुप परिणमन अर्थात् शुद्वोपयोग से विपरीत परद्रव्यो मे शुभ अषुभ रुप परचारित्र है।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == समभाव : == जस्स ण विज्जदि रागो, दोसो मोहो व सव्वदव्वेसु। णासवदि सुहं असुहं, समसुहदुक्खस्स भिक्खुस्स।। —पंचास्तिकाय : १४२ जिस साधक का किसी भी द्रव्य के प्रति राग, द्वेष और मोह नहीं है, जो सुख—दु:ख में समभाव रखता है, उसे न पुण्य का आस्रव होता है और न…
जयनाथ Name of the 21st predestined Tirthankar (Jaina Lord). भावीकालीन २१वें तीर्थंकर का नाम ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मोतीसागर(क्षुल्लक)–Motisagar (Kshullak). Name of a devoted disciple of Ganini shri Gyanmati mataji, who is as the founder of Jambudvip construction at Hastinapur and till today he is providing his valuable guidance & direction in the protection as well as development of the Jain heritage as the Peethadhish of Jambudvip–Hastinapur. गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माताजी के…