प्रवचयनार्थ!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रवचयनार्थ- श्रुतज्ञान का पर्यावाची नाम, जिस आगम में वचन औश्र अर्भ ये दोनों प्रकृश्ट अर्थात् निर्दोश है उस आगम की प्रवचनार्थ संज्ञा है। Pravacanartha- Another name of Shrutgyan, scriptural knowledge
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रवचयनार्थ- श्रुतज्ञान का पर्यावाची नाम, जिस आगम में वचन औश्र अर्भ ये दोनों प्रकृश्ट अर्थात् निर्दोश है उस आगम की प्रवचनार्थ संज्ञा है। Pravacanartha- Another name of Shrutgyan, scriptural knowledge
उपनय To show similarity between two objects by illustration. पक्ष और साधन में दृष्टांत की सदृषता दिखाने को उपनय कहते है जैसे यह पर्वत भी वैसा ही धूमवान् है। अर्थात् दृष्टांत की अपेक्षा लेकर पक्ष में हेतु का दोहराना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
उपकार्य-उपकारक संबंध Beneficial relation. बंध का एक भेद जिस पर उपकार हो वह उपकार्य और जो उपकार करे वह उपकारक।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रयाग- भगवान ऋशभदेव की दीक्षा एवं केवज्ञानकल्याणक भूमि (जहाँ भगवान ने प्रकृश्ट रुप से त्याग किया), वर्तमान इलाहाबाद (उ.प्र.)। युग के प्रथम केषलोंच, प्रथम जैनेष्वरी दीक्षा, प्रथम केवलज्ञान, प्रथम समवसरण एवं प्रथम आर्यिकादिक्षा की भूमि। पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती मातजी की प्ररण से ई. सन् 2001 में इस भूमि पर (इलाहाबाद-बनारस हाइवे पर) “तीर्थकर…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रमा प्रमेय- न्याय विशयक एक ग्रंथ। PramaPremeya- Name of book related to judicial matter
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रमाणंगुल- उत्सेधंगुल से 500 गुना बडा अंगुल। इससे पर्वत, द्वीप, समुद्र आदि का माप होता है। Pramanamgula- A broad measuring unit, A measure
उपदेशसम्यक्त्वार्य A type of Aryas (noble persons) who get right faith by the preaching of saints. अनृद्धि प्राप्त आर्य जिन्हें तिरेसठ शलाका पुरूषों के पुराण (वृत्तान्त) के उपदेश से तत्वार्थ श्रद्धान उत्पन्न हुआ हो।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रमाण परार्थ- परोपपदेष से प्राप्त ज्ञान। PramanaParartha- Knowledge caused by other means
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रमत्त संयत- छठे गुणस्थानवर्ती मुति; जो पुरुश सकल मूल-गुणों से और शील अर्थात उत्तर गुणें से सहित हैं, अतएव महाव्रती होते हैं तथा व्यक्त औश्र अव्यक्त प्रमाद से सहित होने के कारण प्रमŸा संयत कहलाते हैं। Pramattasamyata- One restrained with some carelessness in the sixth stage of spiritual development