चारित्राचार!
चारित्राचार Observance of right conduct. ५ महाव्रत , ५समिति , ३ गुप्ति रूप सम्यक् चारित्र का पालन करना ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
चारित्राचार Observance of right conduct. ५ महाव्रत , ५समिति , ३ गुप्ति रूप सम्यक् चारित्र का पालन करना ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भावस्तवन – Bhavastavana. Eulogical praising of Lord Jinendra. जिनेन्द्र भगवान के गुणों का स्मरण करना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] श्रृंगारमंजरी – Shringaaramanjaree. Name of a poetic composition composed by Ajitsen. छंद अलंकार विषयक अजितसेन कृत एक संस्कृत भाषाबद्ध रचना ” समय ई. 1250-60 “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विदारण क्रिया – Vidarana Kriya. Exposing others’ sinful activities. साम्परायिक आस्रव की १८ वीं क्रिया ” दुसरे ने जो सावध कार्य किया हो उसे प्रकाशित करना “
चारित्र Conduct, Character, Virtue. देशव्रत या महाव्रतरूप आचरण व्यवहार क्गारित्र एवं आत्मस्वभाव में रमण करना निश्र्चय चारित्र है ।।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] समुच्छिन्न क्रिया निवृत्ति – Samuchchhinna Kriyaa Nivritti. Absolute meditation, devoid of all activities or vibrations of soul points. चतुर्थ शुक्लध्यान। इसमे आत्म-प्रदेशों के परिस्पन्दन रुप योगो का तथा काय बल आदि प्राणों का समुच्छिन्न (उच्छेद) हो जाता है। इस ध्यान मे किसी प्रकार का आस्त्रव नही होता। यह अन्तर्मुहर्त समय के लिए होता है।…
[[श्रेणी : शब्दकोष]] ब्रह्मचर्य प्रतिमा – Brahmacarya.Pratima. Seventh model stage of celibacy of Jaina lay- follower. श्रावक की सातवीं प्रतिमा; इसमें श्रावक स्त्रीमात्र का त्याग होकर पूर्ण ब्रह्मचर्य से रहता है ” इसका धारक श्रावक अपने पुत्र – पुत्रियों के विवाह के अतिरिक्त अन्य किसी के विवाह की अनुमोदना नहीं करता है “
चान्द्रीचर्या Procedure of food taking of a Jain saints without any partiality in devotees. मुनि की आहारचर्या ;चन्द्रमा की चांदनी के समान मुनि आहार के लिए धनिक -निर्धन सभी के घर जाते हैं ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] समाय – Samaaya. Involvement of soul in passionless equanimous status. सम का अर्थ राग द्वेष रहित मध्यस्थ आत्मा है। उसमे आय अर्थात् उपयोग की प्रवृत्ति यह समाय है। वह समाय ही जिसका प्रयोजन है, उसे सामायिक कहते है।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सूक्ष्म कषाय : == कौसुम्भ: यथा राग:, अभ्यन्तरत: च सूक्ष्मरक्त: च। एवं सूक्ष्मसराग:, सूक्ष्मकषाय इति ज्ञातव्य:।। —समणसुत्त : ५५९ कुसुम्भ के हल्के रंग की तरह जिनके अन्तरंग में केवल सूक्ष्म राग शेष रह गया है, उन मुनियों को सूक्ष्म—सराग या सूक्ष्म—कषाय जानना चाहिए।