प्रज्ञापनी!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रज्ञापनी – Pragyaapani. Most convient informatory language (easy preaching). एक भाषा; धर्मोपदेश करना ” यह भाषा अनेक लोगों को उद्देश्य कर कही जाती है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रज्ञापनी – Pragyaapani. Most convient informatory language (easy preaching). एक भाषा; धर्मोपदेश करना ” यह भाषा अनेक लोगों को उद्देश्य कर कही जाती है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वेद सिद्ध –Veda Siddha Salvated beings from all three genders – male female & impotent (according to BhutpragyapanNaya) भुतप्रज्ञापन नय की अपेक्षा नपुंसक वेद से सिद्ध होने वाले जीव थोडे एवं स्त्री – पुरुष वेद से सिद्ध होने वाले जीव संख्यत गुणे हैं ” इन सभी का द्रव्य वेद पुरुष वेद ही…
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मूढ़–Muudh. Ignorant, a stupid person. अज्ञानी, देह को आत्मा मानने वाला, द्रव्य गुण पर्यायों से तत्व की अप्रतिपत्ति होना, सूझबूझ से हीन”
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकाश्य – प्रकाशक भाव – Prakasya- Prakashka Bhava. Relation of illuminating objects & means of illu-mination. कार्य – कारण संबंध; प्रकाश्य पदार्थ है और, प्रदीप, सूर्य, चन्द्र आदि प्रकाशक हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] भेदसंघात:Association-cum-dissociation related to karmic molecules. भेद अर्थात्स्कन्धों का टूटना एवं संघात होनाअर्थात्भित्र-भित्र परमाणुओं या स्कन्धों से मिलकर स्कंधों की उत्पत्ति होना “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भामंडल – Bhamamdala. Name of Seeta’s brother, An auspicious em-blem of Lord Arihant. सीता का भाई, अष्ट प्रातिहायों में एक प्रातिहार्य “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] भेद :Difference, type, division, separation, discrimination, disjunction. विरुध धर्मों एवं भित्र-भित्र कारणों काहोना यही भेद है “
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मेय–Meya. Measurable substances. मेय, देश, तुला, कालचतुर्विधमानो में एक भेद; प्रस्थ आदि के द्वारा मापने योग्य वस्तु मेय कहलाती है”
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भय विनय – Bhaya Vinaya. Reverence due to fear. भय के कारण विनय करना “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सम्यक् चारित्र : == सम्यक्त्वरत्नभ्रष्टा, जानन्तो बहुविधानि शास्त्राणि। आराधनाविरहिता, भ्रमन्ति तत्रैव तत्रैव।। —समणसुत्त : २४९ किन्तु सम्यक्त्व रूपी रत्न से शून्य अनेक प्रकार के शास्त्रों के ज्ञाता व्यक्ति भी आराधनाविहीन होने से संसार में अर्थात् नरकादि गतियों में भ्रमण करते रहते हैं। श्रुतज्ञानेऽपि जीवो, वर्तमान: स न प्राप्नोति…