चेष्टा!
चेष्टा Endeavour, Gesture, Activity. किसी वस्तु के लेने व छोड़ने के लिए सक्रिय होना , प्रयत्न या प्रयास करना ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
चेष्टा Endeavour, Gesture, Activity. किसी वस्तु के लेने व छोड़ने के लिए सक्रिय होना , प्रयत्न या प्रयास करना ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्थविर कल्प – Sthavira Kalpa. Code of conduct of Jana saint.समस्त वस्त्र आदि परिग्रह का त्याग करके दिगम्बर होना। 13 प्रकार के चारित्र व 28 मूलगुणो को धारण करना, हीन संहनन होने के कारण नगर आदि मे विहार करना, चारित्र भंग न हो ऐसे उपकरणो को रखना, षिष्यो का पालन करना यह सब हीन…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] रूढ संख्या – संख्या जो स्वयं से अथवा एक से भाजित होती हो। Rurha Samkhya-Prime number (Number which can be divide only by 1 or itself)
चतुर्दोष Particular four faults related to food. संयोजना , अप्रमाण , अङ्ागर और धूम आहार के ये ४ दोष होते हैं ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सम्मत सत्य – Sammata Satya. Something unanimously accepted or approved. बहुत जनों के द्वारा माना गया जो नाम वह सम्मत सत्य है। जैसे लोक मे राजा की स्त्री को रानी कहना।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] यशोभद्रा – नन्दीष्वर द्वीप की उत्तर दिषा में स्थित एक वापी। Yasobhadra-name of a religious preceptor of Acharya Bhadrabahu-2
[[श्रेणी : शब्दकोष]] पृष्ठ – Prstha. The back, the rear, the hind part of anything, page. पिछला हिस्सा, कॉपी या किताब का पन्ना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्तूप – Stuupa. A dome shaped structure ( a type of creation in the samavasharana, the assembly of Lord).समवषरण रचना का एक अंग। ये समवषरण की वीथियो के मध्यभाग मे बनाये जाते है। अर्हत और परमेष्ठियो की प्रतिमाये इनके चारो और स्थापित की जाती है।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विदेह क्षेत्र – Videhaksetra. Specified 5 regions of middle universe compris- ing 1 in Jambudvip, 2 in Dhatkikhand & 2 in Pushkarardh where Dushma-Sushma Kal (un-happy-cum-happy period ) is prevailing there all the time. जम्बूद्वीप का चौथा क्षेत्र, जो सुमेरु पर्वत द्वारा पूर्व व पशिचम दो भागों में विभक्त है – जम्बूद्वीप…
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == निदान : == अगणियत्या यो मोक्षमुखं, करोति निदानमसारसुखहेतो:। स काचमणिकृते, वैडूर्यमणिं प्रणाशयति।। —समणसुत्त : ३६६ जो व्रती मोक्ष—सुख की उपेक्षा या अवगणन करके (परभव में) असार सुख की प्राप्ति के लिए निदान या अभिलाषा करता है, वह कांच के टुकड़े के लिए वैडूर्यमणि को गंवाता है। छेत्तूण य…