द्वींद्रिय जाति नामकर्म!
द्वींद्रिय जाति नामकर्म A Karmic nature causing birth in the form of two sensed beings. वह कर्म प्रकृति जिसमें द्वींद्रिय जाति प्राप्त हो जैसे- शंख, सीप इत्यादि।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
द्वींद्रिय जाति नामकर्म A Karmic nature causing birth in the form of two sensed beings. वह कर्म प्रकृति जिसमें द्वींद्रिय जाति प्राप्त हो जैसे- शंख, सीप इत्यादि।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]
छेदपिंड A book written by Indranandi ji. इन्द्रनंदि (श. १०-११) द्वारा कृत एक यत्याचार विषयक ग्रन्थ ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सर्वर्तुक वन – Sarvartuka Vana. Name of the initiation & omniscience forest of Lord Chandraprabhu. चन्द्रप्रभु भगवान का दीक्षा वन एवं केवलज्ञान वन ।
छत्रपुर Name of a place of the past birth of Lord Mahavira. भगवान महावीर के पूर्व भव की नगरी का नाम ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सर्वथा – Sarvathaa. In every way, in every respect, entirely. पूर्णतः, हर तरह से ।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वृद्धि – Vrddhi. Growth, Increase, Development विकास, बढ़ोत्तरी, पूर्व स्वभाव को कायम रखते हुए भावान्तररूप से अधिकता हो जाना व्रद्धि है”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सर्पगत – Sarvagata.. Omnipresent, all-pervading. सर्वव्याप्त-सभी जगह फैला हुआ। केवलज्ञान के सर्व लोकालोक को जानने के कारण जीव सर्वगत या सर्वव्यापी कहलाता है।
चतुष्टयी वृत्ति Four uses of money (acquisition, saving or protection, growth, expenses). अर्थ की ४ वृत्तियाँ -अर्जन ,रक्षण ,वर्धन ,व्यय ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सराग छद्मस्थ – Saraaga Chhadmastha. Souls at the 4th to 10th stage of spiritual development. छद्मस्थ के दो भेदो मे एक भेद। चौथे से दसवें गुणस्थान वाले जीव सराग छद्मस्थ कहलाते है।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विद्वेषण मंत्र – Vidvesana Mantra. Mystical verses for the use of causing mutual contradiction. वशीकरण, मारण, उच्चाटन आदि मन्त्रों में से परस्पर में विद्वेष कराने वाला एक मंत्र “