लौकिक सुख!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लौकिक सुख –Laukika Sukh: Worldly enjoyments or pleasures . सांसारिक विषय भोगों से प्राप्त होने वाला क्षणिक सुख “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लौकिक सुख –Laukika Sukh: Worldly enjoyments or pleasures . सांसारिक विषय भोगों से प्राप्त होने वाला क्षणिक सुख “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विधि – Vidhi. Manner, Method, Law, procedure, See – Vidhata. सत्ता, सत्त्व, सामान्य, द्रव्य, अन्वय, वस्तु, विधि, अविशेष ये एकार्थवाची शब्द हैं, नयों के विषय के अस्तित्व का विधायक होने से त्रुत की विधि संज्ञा हैं ” देखें – विधाता “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निश्चय आराधना – Nishchaya – Aaraadhanaa. Absolute spiritual prayer or meditation, Synonym word For Mokshamarga, the path of salvation. निश्चय मोक्षमार्ग का एक अपरनाम ” मुनि अवस्था में सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र व तप एन चारों की आराधना व्यवहार आराधना है, इस व्यवहार आराधना के द्वारा आत्मा में एकाग्र परिणतिरूप ध्यान निश्चय आराधना है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शवशय्यासन तप – Shavasayyaasana Tapa. A kind of austerity, to lie like a corspe. कायाक्लेश तप का एक भेद; शव की तरह निश्चेष्ट सोना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शरीरी – Shareeree. Having to do with the body, A living creature. जीव संसारावस्था में शरीर सहित होने पर शरीरी कहलाता है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लोकोत्तर गणना –Lokottara Gananaa The universal calculations ,super calculations . गणना प्रमाण के दो भेदों में एक भेद ;द्रव्य ,क्षेत्र ,काल ,भाव इसके 4 भेद हैं “
आहारक मार्गणा An investigation stage expressed about assimilative (Aharak) and non – assimilative (Anaharak) state of beings. 14वीं मार्गणा जिसमें जीवों के आहारक व अनाहारक का कथन है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] बैल – Baila. Bullock, significant mark of Lord Rishabhdeva. Also of Lord Simandhar and Suriprabh situated in Videhkshetra (region) , one of the 16 dream- marks of Tirthankar’s (Jaina Lord’s ) mother . ऋषभदेव भगवान का चिन्ह , विदेहक्षेत्र में स्थित तीर्थकर सीमंधर एंव सुरिप्रभ का चिन्ह , तीर्थकर की माता के…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निर्विकार – Nirvikaara. Pure, without any defect. विकार रहित “
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == धर्मास्तिकाय : == धर्मास्तिकायोऽरतो—ऽवर्णगन्धोऽशब्दोऽस्पर्श:। लोकावगाढ: स्पृष्ट:, पृथुलोऽसंख्यातिकप्रदेश:।। —समणसुत्त : ६३१ धर्मास्तिकाय रसरहित है, रूपरहित है, गंधरहित है और शब्दरहित है। समस्त लोकाकाश में व्याप्त है, अखण्ड है और विशाल है तथा असंख्यातप्रदेशी है। उदकम् यथा मत्स्यानां, गमनानुनुग्रहकरं भवति लोके। तथा जीवपुद्गलानां, धर्मद्रव्यं विजानीहि। —समणसुत्त : ६३२ जैसे इस…