षट् कर्म!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] षट् कर्म – Sat Karma. Six occupations for livelihood instructed by Lord Rishabhadev. भगवान ऋषभदेव द्वारा प्रजा की आजीविका के लिए बताये गये 6 कार्य; असि,मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] षट् कर्म – Sat Karma. Six occupations for livelihood instructed by Lord Rishabhadev. भगवान ऋषभदेव द्वारा प्रजा की आजीविका के लिए बताये गये 6 कार्य; असि,मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नाना-जीव एक-अजीव – Nana-Jiva Eka-Ajiva Pertaining to different types of living beings and one non-living beings अनेक जीव और एक अजीव ”
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सत्यवादी : == विश्वसनीयो मातेव, भवति पूज्यो गुरुरिव लोकस्य। स्वजन इव सत्यवादी, पुरुष: सर्वस्य भवति प्रिय:।। —समणसुत्त : ९५ सत्यवादी पुरुष माता की तरह विश्वसनीय, जनता के लिए गुरु की तरह पूज्य और स्वजन की भाँति सबको प्रिय होता है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] श्वेतवर्ण – Shvetavarna. White colour, as a sign of meritoriousness. एक लौकिक मंगल, यह अरहंत भगवान के शुक्लध्यान, शुक्ल लेश्या का प्रतीक होने से मंगल कहलाता है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] बंधक-कर्मो का बंध करने वाला, ऋण के बदले रखी जाने वाली वस्तु। Bandhaka- one related to the binding of karmas, a surety or guarantee
[[श्रेणी:शब्दकोष]] नागहस्ती – Nagahasti Name of great saint. आचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबली के समकक्ष के एक मुनि ” व्यग्रहस्ती के शिष्य और जीत्दंड के गुरु (समय ई. 93-162) ”
[[श्रेणी : शब्दकोष]] मय – Mya. Father’s name of Mandodari, A king of Yadav dynasty. मंदोदरीकेपिताकानाम , यदु (यादव) वंशकाएकराजा “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] श्रेयांस – Shreyaansa. Name of a king, a great personality of Jaina history who gave sugarcane juice to Lord Rishabhdev, initiating the food-offering to the Jaina saints. हस्तिनापुर के कुरुवंशीय राजा सोमप्रभ के भाई ” वृषभदेव को देखकर पूर्व भव में अपने द्वारा दिए गये आहार दान का स्मरण हो आया था ” इससे…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] बंधअपसरण-अपकर्शण; बंध का क्रम से घटना बंधापसरण है। BandhaApasarna- Bond reduction
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == संघ : == संघो गुणसंघात:, संघश्च विमोचकश्चकर्मणाम्। दर्शनज्ञानचरित्राणि, संघातयन् भवेत् संघ:।। —समणसुत्त : २५ गुणों का समूह संघ है। संघ कर्मों का विमोचन करने वाला है। जो दर्शन, ज्ञान और चारित्र का संघात (रत्नत्रय की समन्विति) करता है, वह संघ है। कर्मरजजलौघविनिर्गतरस्य, श्रुतरत्नदीर्घनालस्य। पंचमहाव्रतस्थिरर्किणकस्स, गुणकेसरवत:।। श्रावकजन—मधुकर—परिवृतस्य, जिनसूर्यतेजोबुद्धस्य। संघपद्मस्य…