उत्करिकासन तप!
उत्करिकासन तप A type of sitting austerity. कायक्लेश तप का एक भेद-ऊपर को संकुचित होकर बैठना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
उत्करिकासन तप A type of sitting austerity. कायक्लेश तप का एक भेद-ऊपर को संकुचित होकर बैठना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रतीति- pratiti Experience, conviction, belief द्रिष्टि श्रधा रुचि।
उत्कर Wooden sawdust, Powder. आरी से लकड़ी को चीरने पर जो बुरादा निकलता है उसका नाम उत्कर है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भद्रमित्र – Bhadramitra. Name of the counselor of the king of Sinhpu, another name is Satyaghosh. सिंहपुर के राजा का मंत्री, अपरनाम सत्यघोष ” आगे चौथे भव में मोक्ष प्राप्त किया “
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वस्थान संयत – Svasthaana Sammyata. See- Svasthaana Apramatta. देखे- स्वस्थान अप्रमत्त। मूल व उत्तर गुणो से मिण्डत, व्यक्त व अव्यक्त परिणाम से रहित कषायो का अनुपशामक व अक्षपक होते हुए भी ध्यान मे लीन अप्रमत्तसंयत स्वस्थान अप्रमत्त कहलाता है।
उच्चपद The supreme place i.e. place of salvation. उच्च स्थान मोक्ष ही उच्च पद है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == कृपणता : == करिणो हरि—नहरविदारियस्स दीसंति मुत्तिया कुम्मे। अहव किवणाण मरणे पथडच्चिय होंति भंडारा।। —गाहारयण कोष : १५५ िंसह के नख से विदारित होने पर हाथी के कुम्भस्थल में मोती दिखाई पड़ते हैं अथवा कृपणों के मरने पर ही उनका भंडार (धन) प्रकट होता है। सोसं न गओ…
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्ववात्सल्य – Svavaatsalya. Self affection. वात्सल्य के दो भेदो मे एक भेद। स्वद्रव्य मे रति अर्थात् अपनी आत्मा से सम्बन्ध रखने वालाक वात्सल्य प्रधान है।
ईहावरणीय कर्म An obscurring karma of keen desire or curiosity. जिज्ञासा एंव इच्छाओं को रोकने वाला कर्म जिसके तीव्र क्षयोपशम से पदानुसारी बुद्धि प्राप्त होती है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भावन लोक – Bhavana Loka. Place of residence of deities. जहां असुरकुमार आदि भवनवासी देवों के भवन हैं अर्थात् खरभाग- पंकभाग “