दिल्ली से विहार कर माताजी का हस्तिनापुर में आगमन मंगल विहार १८ नवम्बर १९८२, कार्तिक शु. ३ को मैं कम्मोजी की धर्मशाला से विहार कर नवीन शाहदरा आ गई। यहाँ दो दिन रुकने के बाद दिल्ली से विहार कर दिया। पूर्ववत् साहिबाबाद, गाजियाबाद, मोदीनगर, मेरठ होते हुए मवाना आई। वहाँ से २९ नवम्बर १९८२, कार्तिक…
अनादिकाल से इस अयोध्या में अनंत-अनंत तीर्थंकर जन्म ले चुके हैं। क्योंकि प्रत्येक चतुर्थकाल में चौबीस-चौबीस तीर्थंकर यहीं अयोध्या में ही जन्म लेते हैं और आगे भविष्यकाल में भी भरतक्षेत्र की प्रत्येक चौबीसी यहीं पर होवेंगी। वर्तमान में हुंडावसर्पिणी नाम के काल दोष से यहाँ पर
श्रीऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ और अनंतनाथ ये पाँच तीर्थंकर ही जन्में हैं। शेष उन्नीस तीर्थंकरों ने अन्यत्र जन्म लिया है। फिर भी पुन: इसी भूमि पर ‘‘अयोध्या’’ नगरी की रचना की जाती है।
माताजी का प्रथम शिष्या से वियोग (ज्ञानमती माताजी की आत्मकथा) अजमेर से विहार-अजमेर में चातुर्मास के बाद कालू के श्रावक आचार्य संघ का विहार कराने के लिए प्रार्थना करने आ चुके थे। आचार्यश्री ने स्वीकृति भी दे दी थी अतः संंघ अजमेर से विहार करके पीसांगन नाम के एक छोटे से गाँव में कुछ दिनों…