तीर्थंकर ऋषभदेव परिचय गर्भावतार अनन्तर छह महीने बाद भगवान् ऋषभदेव वहाँ स्वर्ग से अवतार लेंगे, ऐसा जानकर इंद्र की आज्ञा से प्रेरित कुबेर ने आकाश से रत्नों की वर्षा करना प्रारंभ कर दिया। वह इंद्रनीलमणि, हरिन्मणि, पद्मरागमणि आदि की वर्षा ऐसी शोभित हो रही थी कि मानो ऋषभदेव की सम्पत्ति उत्सुकता के कारण उनके आने…
तीर्थंकर संभवनाथ इसी भरतक्षेत्र के अंग देश के चम्पापुर नगर में हरिवर्मा नाम के राजा थे। किसी एक दिन वहाँ के उद्यान में ‘अनन्तवीर्य’ नाम के निग्र्रन्थ मुनिराज पधारे। उनकी वन्दना करके राजा ने धर्मोपदेश श्रवण किया और तत्क्षण विरक्त होकर अपने बड़े पुत्र को राज्य देकर अनेक राजाओं के साथ संयम धारण कर लिया।…
तीर्थंकर अरहनाथ इस जम्बूद्वीप में सीता नदी के उत्तर तट पर एक कच्छ नाम का देश है। उसके क्षेमपुर नगर में धनपति राजा राज्य करता था। किसी दिन उसने अर्हन्नन्दन तीर्थंकर की दिव्यध्वनि से धर्मामृत का पान किया, जिससे विरक्त होकर शीघ्र ही जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर ली। ग्यारहअंगरूपी महासागर का पारगामी होकर सोलह कारण…
भगवान पार्श्वनाथ जीवन दर्शन भगवान पार्श्वनाथ के दशभव लेखिका-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी पोदनपुर में महाराज अरविन्द की राजसभा-राजसभा में दरबार लगा हुआ है। मध्य में स्वर्ण का सिंहासन है। उस सिंहासन के छत्र में वैडूर्यमणि जड़ा हुआ है। जिसकी नीली-नीली आभा चारों तरफ अपना नील प्रकाश फैलाकर राजभवन में मानों नीले-नीले आकाश को ही उतार…
भगवान पार्श्वनाथ -कु. अर्चिता जैन सुपुत्री श्री अरुण कुमार जैन, इलाहाबाद प्रस्तावना-जैनधर्म के अनुसार वर्तमान में २४ तीर्थंकर हुए हैं, तीर्थंकरों की इस शृँखला में पहले भगवान ऋषभदेव फिर भगवान महावीर और अब भगवान पाश्र्वनाथ का नाम हम सभी के मस्तक पटल पर छाया हुआ है। उनकी जयंती और निर्वाणोत्सव हम आज बड़ी धूमधाम से…
भगवान महावीर का जीवन दर्शन विश्व शांति की अमर देन अनादिकाल से विश्व की परम्परा विद्यमान है। प्रवाहमान जगम क्रम में जैन शासन भी अपने में अनादि है। अनंत अनंत तीर्थंकरों की अपेक्षा से यह जैन शासन अनादि है। प्रत्येक तीर्थंकर की अपेक्षा से इसका तत्वर्ती प्रारंभ माना जा सकता है। जैन शासन का दीप…
भगवान महावीर का संक्षिप्त परिचय -गीता जैन, स्योहारा भगवान महावीर का जीव पूर्व में सोलहवें स्वर्ग के पुष्पोत्तर विमान में उत्तम इन्द्र था। वहाँ पर उसकी आयु बाईस सागर की थी, जब उसकी आयु छह महीने की रह गई और वह स्वर्ग से अवतार लेने के सन्मुख हुआ तब सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर…
दिगम्बर-परम्परा में गौतम स्वामी -डॉ. अनिल कुमार जैन जैनों की दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में गौतम स्वामी का महत्वपूर्ण स्थान है। ये भगवान महावीर के प्रथम गणधर थे। गौतम स्वामी वर्तमान जैन वाङ्मय के आद्य-प्रणेता थे। दिगम्बर आर्ष ग्रंथों में भगवान् महावीर को भाव की अपेक्षा समस्त वाङ्मय का अर्थकर्ता अथवा मूलतंत्र कर्ता अथवा…