पुद्गगल (Matter) सारांश प्रस्तुत आलेख में हमने संक्षेप में जड़ आदि लोक में विद्यमान सभी द्रव्यों के सामान्य— विशेष गुणों—पर्यायों का वर्णन किया फिर रसायन विज्ञान की भाँति पुद्गल पदार्थ का विश्लेषण उनके विशेष गुणों के आधार पर किया ताकि विद्वत्जन पुद्गल द्रव्य पर और अधिक शोध कर सके।जैन दर्शन के अनुसार यह विश्व द्रव्यों…
गोबर-गणेश (काव्य छः से सम्बन्धित कथा) अध्ययन शालाओं में एक जड़मति छात्र की क्या अवस्था होती है, उसे वह भुक्तभोगी विद्यार्थी ही अनुभव कर सकता है; जो बात-बात में अध्यापक की प्रताड़ना, साथियों और सहपाठियों द्वारा उपहास एवं आत्मग्लानि उसके रसमय जीवन को निराशा से भर देते हैं! निराशा ही क्यों? कभी-कभी तो आत्म-हत्या जैसा…
जैन पद्मपुराण में नारी का पारिवारिक आदर्श स्वरूप डॉ. कैलाशचन्द जैन बड़ौत—मेरठ (उ०प्र०) धर्मग्रन्थों— धर्म—शास्त्रों को आध्यमित्मक श्रद्धाभाव से पढ़ लेना एक धार्मिक परम्परा के रूप में बनता चला जा रहा है। मनन, चिन्तन कर उनसे आदर्श, नैतिक मानवीय, व्यवहारिक, निर्देशों उपदेशों एवं शिक्षाओं को जीवन मेेंं समाहित कर, नैतिक आदर्शों से युक्त जीवन यापन की…
[[श्रेणी:जैन जातियां]] ”जैनधर्म और वर्ण व्यवस्था” स्वर्गस्थ-आर्यिका श्री विजयमती माताजी स्याद्वादो वर्तते यस्मिन्, पक्षपातो न विद्यते। नास्ति परिपीडनं यस्मिन्, जैनधर्मो स उच्यते।। ‘जिसमें वस्तुतत्व-प्रतिपादन का माध्यम स्याद्वाद हो, प्रत्येक वस्तु में रहने वाले अनन्त धर्मों का निरूपण रूप से किया गया हो, परपीड़ा का जिसमें लवलेश भी नहीं रहे, वही जैनधर्म है।’ इस कथन से…
अभक्ष्य किसे कहते हैं? जो भक्षण करने योग्य न हो, वे अभक्ष्य कहलाते हैं। स्वामी श्री समन्तभद्राचार्य ने अभक्ष्य को बतलाते हुए कहा है- त्रसहतिपरिहरणार्थम्, क्षौद्रं पिशितं प्रमादपरिहृतये।मद्यं च वर्जनीयं, जिनचरणौ शरणमुपयातै:।।८४।। जिनेन्द्रदेव के चरणयुगल की शरण लेने वाले श्रावक त्रस जीवों की हिंसा का परित्याग करने के लिए मधु और मांस का त्याग कर…
ग्वालियर जिले का प्राचीन जैन शिल्प वैभव भारतीय इतिहास की पृष्ठभूमि में धार्मिक आन्दोलनों का विशेष महत्त्व रहा है। हिन्दू, बौद्ध जैन धर्मों ने देशकाल के अनुरूप अपना—अपना योगदान दिया। अन्य धर्मों की अपेक्षा जैन धर्म में समता, अिंहसा एवं सम्यक संकल्प को विशेष बल दिया गया। इस धर्म में नैतिकता, वैचारिक उन्नयन तथा आत्मसंयम…