29. स्वसमय और परसमय
स्वसमय और परसमय त्रिशला– जीजी! आज तुमने जो आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के द्वारा किये गये समयसार के उपदेश में स्वसमय-परसमय का विवेचन सुना है, उसे हमें एक बार पुन: समझाओ? मालती– सुनो! मैं विस्तृत विवेचन के साथ तुम्हें समझाती हूँ। जीवो चरित्तदंसणणाणट्ठिउ तं हि ससमयंजाण। पुग्गलकम्म पदेशट्ठियं च तं जाण परसमयं।। अर्थ-जो जीव दर्शन,…