व्यवहार रत्नत्रय उपादेय है या नहीं? णियमेण य जं कज्जं तं णियमं णाणदंसणचरित्तं। विवरीयपरिहरत्थं भणिदं खलु सारमिदि वयणं।।३।। जो करने योग्य है नियम से वो ही ‘नियम’ है। वो ज्ञान दर्शन औ चरित्ररूप धरम है।। विपरीत के परिहार हेतु ‘सार’ शब्द है। अतएव नियम से ये ‘नियमसार’ सार्थ है।।३।। अर्थ-नियम से जो करने योग्य है…
आपके भोजन को सुस्वाद बनाने के लिये कुछ खास टिप्स जो पकाते समय व्यंजन की महक व स्वाद को दोगुना कर देंगे। १- करेले की सब्जी बनाते समय १ छोटा चम्मच भुनी व पीसी मैथी डाले, इससे करेले की कड़वाहट कम हो जायेगी। २- मठरी के लिये मैदा गूंधते समय थोड़ा सा हरा धनिया…
क्षमावाणी पर्व का महत्त्व कपूरचंद पाटनी, गुवाहाटी आज परम पवित्र पर्यूषण के क्षमावाणी पर्व का दिन है। संसारी जीव प्रतिदिन अज्ञान से, प्रमाद से, कषायों से अनेक अपराध करता ही रहता है। हम सबने आत्मशुद्धि के इस पावन पर्व में प्रतिदिन वीतराग सर्वज्ञदेव के दर्शन, स्तुति, पूजन, जप, ध्यान स्वाध्याय आदि अनेक धर्म कार्यों…
दान का लक्षण स्व और पर के अनुग्रह के लिए अपना धन आदि वस्तु का देना दान कहलाता है। अर्थात् गृहत्यागी, तपस्वी, चारित्रादि गुणों के भण्डार ऐसे त्यागियों को अपनी शक्ति के अनुसार शुद्ध आहार, औषधि आदि देना दान है। घर के आरंभ से जो पाप उत्पन्न होते हैं, गृहत्यागी साधुओं को आहारदानआदि देने से…
त्रिलोकसार व्रत त्रिलोकसार विधि- जिसमें नीचे से पाँच से लेकर एक तक, फिर दो से लेकर चार तक और उसके बाद तीन से लेकर एक तक बिन्दु रखी जावें यह त्रिलोकसार विधि है। इसका प्रस्तार तीन लोक के आकार का बनाना चाहिए। इसमें तीस धारणाएँ अर्थात् तीस उपवास और ग्यारह पारणाएँ होती हैं। उनका क्रम…
कवलाहार वाद एवं नय निक्षेपादि विचार ‘केवली कवलाहार करते हैं या नहीं’ यह विषय आज जितने और जैसे विवाद का बन गया है शायद दर्शनयुग के पहिले उतने विवाद का नहीं रहा होगा। ‘सयोग केवली तक जीव आहारी होते हैं’ यह सिद्धान्त दिगम्बर, श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं को मान्य है क्योंकि—‘‘विग्गहगइमावण्णा केवलिणो समुहदो अजोगी य। सिद्धा…