चत्तारि मंगल में पाठ भेद (१) प्राचीन पाठ— चत्तारि मंगलं – अरिहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहु मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा – अरिहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि – अरिहंत सरणं पव्वज्जामि, सिद्ध सरणं पव्वज्जामि, साहु सरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि। क्रिया कलाप-पृ. ८९, १४४ (वीर सं….
शीलशिरोमणि आर्यिका सीता सीता का जन्म— मिथिलापुरी में राजा जनक राज्य करते थे। उनकी रानी विदेहा पातिव्रत्य आदि गुणों से परिपूर्ण परमसुन्दरी थी। एक समय वह गर्भवती हुई। पुन: नव महीने बाद उसने पुत्र और पुत्री ऐसे युगल संतान को जन्म दिया। पुत्र के जन्म लेते ही उसके पूर्वभव के वैरी महाकाल नामक असुरकुमार देव…
१५ – चम्पापुर में अवधिज्ञानी महामुनि का आगम राजा श्रीपाल द्वारा मुनि से अपने एवं मैना सुन्दरी पूर्वभवों का श्रवण महाराजा श्रीपाल अपने सिंहासन पर विराजमान हैं। उनकी बाई ओर भद्रासन पर महासती मैनासुंदरी बैठी हुईं हैं। राजसभा लगी हुई है। वंदीजन महामंडलेश्वर श्रीपाल का यशोगान कर रहे हैं और वीरांगनाएँ चंवर ढोर रही हैं।…
जानिए कैंसर रोधी भोजन के बारे में भयानक बीमारियों में कैंसर का नाम प्रमुख है। कैंसर लाइलाज नहीं बशर्ते इसका पता प्रारंभ की स्थिति में लग जाए। हमारे खान—पान की गलत आदतों या कुछ कमियों के कारण ही कैंसर होता है परन्तु इसका पता कैंसर होने के बाद ही चलता है। यदि हम प्रारंभ से…
बुन्देलखण्ड क्षे़त्र में अनदेखी पाण्डुलिपियाँ वर्तमान समय मेें हो रही माँ जिनवाणी की उपेक्षित दुर्दशा को देखकर हृदय में पीड़ा उत्पन्न होती है। कई वर्षों से मन में विचार उठकर रह जाते थे लेकिन मन में आए विचार निरर्थक नहीं जाते हैं। हमारे आचार्यों द्वारा स्वानुभूत ज्ञान प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियों में सुरक्षित है। इन ग्रंथों…
गणधरवलय व्रत विधि व्रत विधि— गणधरवलय मंत्र श्री गौतमस्वामी के मुखकमल से निकले हुए अत्यधिक महिमाशाली मंत्र हैं, ये संपूर्ण ऋद्धि- सिद्धि को देने वाले और सर्व रोगों को तथा सर्व संकटों को हरने वाले हैं। ये ४८ मंत्र हैं। इनके ४८ व्रत होते हैं। उत्तम विधि उपवास एवं जघन्य एकाशन है। व्रत के दिन…
तीन चौबीसी व्रत विधि व्रत विधि— जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के वर्तमानकालीन तीर्थंकर श्री ऋषभदेव से लेकर श्री महावीरपर्यंत २४ हैंं। ऐसे ही भूतकालीन श्री निर्वाणनाथ से लेकर श्री शांतिनाथ पर्यंत २४ हैं, पुन: भविष्यत्कालीन श्रीमहापद्म से लेकर अनंतवीर्य पर्यंत चौबीस हैं। ये २४±२४±२४·७२ तीर्थंकर के ७२ व्रत करने होते हैं। व्रतों की उत्कृष्ट विधि उपवास,…