”विद्यार्थी का अध्ययन कक्ष” 1.अध्ययन कक्ष भवन के पश्चिम—मध्य क्षेत्र में बनाना अतिलाभप्रद है, इस दिशा में बुध—गुरु—चन्द्र एवं शुक्र चार ग्रहों से उत्तम प्रभाव प्राप्त होता है। इस दिशा के कक्ष में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को बुध ग्रह से बुद्धि वृद्धि, गुरु ग्रह से महत्वाकांक्षा एवं जिज्ञासु बुद्धि, चन्द्रगृह से नवीन विचारों की…
श्रुतज्ञान व्रत (१) पहली विधि- श्रुतविधि उपवास में मतिज्ञान के २८, ग्यारह अंगों के ११, परिकर्म के २, सूत्र के ८८, प्रथमानुयोग का १, चौदह पूर्वों के १४, पाँच चूलिका के ५, अवधिज्ञान के ६, मन: पर्ययज्ञान के २ और केवलज्ञान का १, ऐसे १५८ उपवास करने होते हैं। एक-एक उपवास के बाद एक-एक पारणा…
चारित्र से ही निर्वाण की प्राप्ति चन्दनामती – पूज्य माताजी! वंदामि, माताजी! मैं आपसे जानना चाहती हूँ कि मोक्ष की प्राप्त का कारण क्या है? श्री ज्ञानमती माताजी – दर्शन, ज्ञान हैं प्रधान जिसमें ऐसा चारित्र इस जीव को देवेन्द्र, असुरेन्द्र और चक्रवर्ती के वैभव के साथ-साथ निर्वाण को प्राप्त करा देता है।’ चन्दनामती –…
जिनप्रतिमा का लक्षण (कृत्रिम जिनप्रतिमा) (यक्ष-यक्षी समेत) शान्तप्रसन्नमध्यस्थनासाग्रस्थाविकारकृत।सम्पूर्णभावरूपानुविद्धांगं लक्षणान्वितम्।।रौद्रादिदोषनिर्मुक्तप्रातिहार्यां – कयक्षयुक्।निर्माप्य विधिना पीठे जिनबिम्बं निवेशयेत्।। अर्थ – जिसके मुख की आकृति शांत हो, प्रसन्न हो, मध्यस्थ हो, नेत्र विकाररहित हो, दृष्टि नासिका के अग्रभाग पर हो, जो केवलज्ञान के सम्पूर्ण भावों से सुशोभित हो, जिसके अंग उपांग सब सुन्दर हों, रौद्र आदि भावों से…
मन (ध्यान में एक आवश्यक) मन एक बहुत बड़ी ऊर्जा का स्रोत है, किन्तु उस पर नियन्त्रण न होने के कारण उस ऊर्जा का विभिन्न विचारों के रूप में बहिर्गमन होता रहता है, एवं दुरूपयोग भी होता रहता है। मन विद्युत के मेन स्विच की तरह है इसे बन्द कर दें तो इन्द्रिय—लम्पटता रूपी उपकरण…
व्यवहार काल के अन्तर्गत कुछ विशेष संख्याएँ आर्यखण्ड में नाना भेदों से संयुक्त जो काल प्रवर्तता है, उसके स्वरूप का वर्णन करते हैं। कालद्रव्य अनादिनिधन है, वर्तना उसका लक्षण माना गया है-जो द्रव्यों की पर्यायों को बदलने मे सहायक हो, उसे वर्तना कहते हैं। यह काल अत्यन्त सूक्ष्म परमाणु बराबर है और असंख्यात होने के…